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________________ विधि-विभाग Jultistrenind -1-20TJanatand पीछे नवमें वलय के बायें तरफ २४ शासन देवियों की स्थापना कर २४ चांदी की बरक लगी हुई सुपारियां चढ़ावे । यथा १ ॐ चक्रेश्वर्यै नमः। २ ॐ अजित बलायै नमः । ३ ॐ दुरितार्य नमः । ४ ॐ काल्यै नमः । ५ ॐ महाकाल्यै नमः । ६ॐ श्यामायै नमः । ७ ॐ शान्तायै नमः । ८ ॐ भृकुट्यै नमः। ९ सुतारकायै नमः । १० ॐ अशोकायै नमः। ११ ॐ मानव्यै नमः ।। १२ ॐ चण्डायै नमः। १३ ॐ विदितायै नमः। १४ ॐ अंकुशाये नमः । १५ ॐ कन्दर्पायै नमः । १६ ॐ निर्वाण्यै नमः । १७ ॐ बलायै नमः । १८ ॐ धारिण्यै नमः । १९ ॐ धरण प्रियायै नमः । २० ॐ नरदत्तायै नमः । २१ ॐ गान्धायै नमः । २२ अम्बिकायै नमः । २३ ॐ पद्मावत्यै नमः । २४ ॐ सिद्धायिकायै नमः । दशम वलय दशवे वलय में चारों दिशाओं में चार द्वारपालों की स्थापना कर । वलिवाकुलले ॐ कुमुदाय नमः, पूर्व दिशा की तरफ । ॐ अञ्जनाय नमः, दक्षिणदिशा की तरफ । ॐ वामनाय नमः, पश्चिमदिशा की तरफ । ॐ पुष्पदन्ताय नमः, उत्तरदिशा की तरफ चढ़ावे । चार विदिशा की तरफ चार वीर पद पर वलिवाकुल चढ़ावे । १ ॐ मणिभद्राय नमः । २ ॐ पूर्णभद्राय नमः । ३ ॐ कपिलाय नमः । ४ ॐ पिङ्गलाय नमः । इसी तरह दशवें वलय में आठों दिशा में, चार द्वारपाल. चार वीर स्थापना करे । एकादश वलय पीछ ग्यारहवें वलय में पूर्ण कलश के आकार ( रवम्प ) में ऊपर किया हुआ सिद्धचक्रजी के गले के स्थान नवनिधान पद पर नव चांदी गोने के कलशों में यथाशक्ति नगदी रखकर चढ़ावे । नोट-जगा मण्डलजी पं उपर चमेश्वरी शामन यो आदि की मूनि भी विराजमान a rlaniARE-- - -2-22 :22 :1-12-1-1 - 1...... . ..tri
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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