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________________ R a ditiatashattrakshatar.kirtartothkaryakrantiktattatokhetarakpohtsANgakarsatyaka २३६ जैन-रत्नसार LAT-slash- S rrrrrrrrrrrrrrrrrone ... -.m e rnamarrrrrr . .. . .. .... ran. e प्रत्ययस्य नन्नयनननननननन्त्रणप्रणयन प्र rieslestatisteil-talo-Iladeisleadlrdestablect-sholactathokiatestlebradst- t को तैल तथा इत्र वरक, सिन्दूर चढ़ाकर उनका पूजन तथा आवाहन करे। पान ४२, बादाम ४२, किसमिस १६०, लवंग १६०, चावल पावभर, बतासा ४२ पैसे ४२ और पञ्च परमेष्ठी, दशदिक्पाल तथा नवग्रहों की भेटना में चांदी चढ़ावे और पञ्च परमेष्ठी से आधी आधी भेट दशदिक्पाल तथा नवग्रहों पर चढ़ानी चाहिये बीचके पट्टे पर पंचपरमेष्ठी सहित ज्ञान, दर्शन, माला के आकार की स्थापना करे दाहिनी तरफ के पट्टे पर दशदिक्पाल बायीं तरफ के पट्टे पर नवग्रह की स्थापना करते समय उनका आवाहन मंत्र पढ़ावे, या पढ़े। पञ्चपरमेष्ठी आवाहन मन्त्र ___ अर्हन्त ईशा सकलाश्वसिद्धा, आचार्य वर्या अपि पाठकेन्द्राः। मुनीश्वरा सर्व समीहितानि, कुर्वन्तुरत्न त्रययुक्त भाजः ॥१॥ इस मन्त्र के कहने के बाद कुसमाञ्जली छिड़के। इतना करने के बाद पंचपरमेष्ठीके पट्ट की। निम्न श्लोकों से पूजा करे। पञ्चपरमेष्ठी पूजन मन्त्र (अरिहंत पद पूजन मन्त्र ) अथाष्टदल मध्यान्ज कणिकायां जिनेश्वरान् । आविर्भूतोल्लसद्वोधाना व्रतस्थापयाम्यहम् ॥१॥ इस मन्त्रके पढ़ने के बाद जल, चन्दन, धूप, दीप चढ़ाके अरिहंत पद पर पान चढ़ावे । सिद्ध पदपूजन मंत्र ___तस्यपूर्वदले सिद्धान्, सम्यक्त्वादि गुणात्मकान् । निश्रेय सम्पद प्राप्तान निदधे भक्ति निर्भरः ॥२॥ यह मन्त्र पढ़के जल, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप चढ़ाकर सिद्धपद पर पान चढ़ावे, उसके बाद आचार्य पद का मन्त्र बोले । ___ आचार्य पद पूजन मन्त्र स्थापयामिततः सूरीन् दक्षिणेऽस्मिन् दले मले चरतः पञ्चधाचारान् षट् । चन्च कन्यवनप्रवचनवप्रवनवप्रवद्रप्रवद्रक ratilottilak-lalayalashtalksibihrrailikinitiatiTele लमशालामा जनप्रजनन t elaatkaaliaTalkin
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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