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________________ Yatrakaesrtkessorsttismeshdbhabhartistskoshooto.sxebsksattatestoratikkatapost.caree Wwwwww wonww नगनननननन्यग्रमणप्रत्राप्रमाण FRahmalishshaliphalatasootilbhagananata Kapadantatoladkiokiantosholebr विधि-विभाग २३३ अनशन करके मोक्ष गये हैं इसीलिये इस पर्वत का नाम पुण्डरीकगिरि पड़ा है। सर्व तपस्या पारण विधि प्रथम अक्षत, नैवेद्य, फल, नगदी से ज्ञान पूजा करके इरियावहियं पडिकमामि० पीछे अमुक तप पारवा निमित्त मुहपत्ति पडिलेहूं ? ऐसा कह मुहपत्ति का पडिलेहण कर दो वंदना देवे । पीछे खमासमण दे “इच्छा कारेण संदिसह भगवन तुब्भे अमं अमुक तप पारावेह” कहे। गुरु के “पारावेमो” कहने पर पुनः खमासमण दे “इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अमुक तप णिक्खेवणत्थं काउसग्गं कारावेह" । गुरु के “कारावेमो" कहने पर आठ स्तुतियों का देव वन्दन करे। तत्पश्चात् "अमुक तप पारणार्थ करेमि काउसग्गं० अणत्थ.” कह एक णमोकार का काउसग्ग पार थुई कह लोगस्स० कह णमुत्थुणं. कहे । पीछे नीचे बैठकर "भगवन् अमुक तप करते कोई अविधि या आशातना करी हो तथा जो कोई दूषण लगा हो उसके लिये मन, वचन, काया कर मिच्छामि दुक्कडं और ज्ञान भक्ति द्रव्य से भाव से किया होय सो प्रमाण फलदायक होजो" ऐसा कहे। गुरु के "णित्थारगा” पारगा होत्था । कहने पर पञ्चक्खाण करे । तदनन्तर 'अमुक' तप आलोयणा निमित्तं करेमि काउसग्गं० १६ णमोकार का काउसग्ग करे। पीछे यथाशक्ति स्वाध्याय करे गुरु भक्ति करे तथा स्वामीवत्सल कर याचकों को दान देवे, सन्मान करे । शान्ति पूजा विधि शुभमास,शुभतिथि,शुभवार,शुभ नक्षत्र,शुभघड़ी, शुभदिन, शुभमुहूर्त में पूजन करनेवाला तथा जिसकी तरफ से पूजन करायी जाय उसका चन्द्र में बल देखकर सात से लेकर एकसौ आठ तक स्नात्रिये जिन मन्दिर में में प्रतिमाजी के आगे पञ्च परमेष्ठी का पट्टा और दाहिनी तरफ दशदिकपाल * के तथा बायीं तरफ नवग्रहों के पट्टों को स्थापित करे इसके बाद एक a प्रत्रग्रन न.प्रय प्रजातनचन्नप्रवन्य tib ahia fistialaskaalo जननननननननननननन्त्र- Rasaikash kisbstithilakiNotankitatistation thatohtofastisaar 30
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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