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________________ **** JYKK विधि - विभाग सुखसिन्धु विभु भगवान् श्रीहरिपूज्यपद पाए परं Yester Year २०७ सविनय कवीन्द्र सुकीर्तितं तं नौमि सिद्धगिरीश्वरम् ॥१०॥ इसके बाद "जंकिंचि ०", "णमुत्थुणं.”, “जावंति चेइआइं.”, “जावंतकेवि साहू०”, “ नमोऽर्हत्०” कहकर श्रीशत्रुंजय तीर्थराज का गुण गर्भित १० गाथा का स्तवन कहें । श्री सिद्धगिरि स्तवन गाथा १० सुण सुण से गिरखामी, जगजीवन अन्तर जामी । हूं तो अरज करूं सिर नामी, कृपानिध विनती अवधारो । भवसागर पार उतारो निज सेवक चान वधारो, कृपानिध विनती अवधारो ॥ १॥ प्रभु मूरति मोहन गारी, निरख्यां हरखै नरनारी । जाऊं बारीहूं वारहजारी, कृपानिध बीनति अवधारो ||२|| हिवकिसिय विमासण कीजै, मुझ ऊपर महरधरीजै । दिलरंजन दर्शनदीजै, कृपानिधवीनति अवधारो ||३|| आजसयल मनोरथफलिया, भव भावना पातक टलिया । प्रभू जो मुझसे मुख मिलिया, कृपानिध वीनति अवधारो ||१|| समरया संकट टलिजावै, नवनव नित मंगलथावे | मुझ आतमपुण्य भरावे, कृपानिधवीनति अवधारो ||५|| करजोड़ी वीनति कीजे, केशर चन्दन चरचीजै । दिन धन धन तेह गिणीजै कृपानिधवीनति अवधारो ||६|| प्रभुदरश सरसलहि तोरो, अति हरषित हुवों चितमोरो । जिमदीठां चन्द चकोरो, कृपानिधवीनति अवधारो ||७|| परतिख प्रभु पञ्चम आरे, वीस महाभय संकट वारे । सहुसेवक काजसुधारे कृपानिधवीनति अवधारो ||८|| सेवो स्वामी सदासुखदाई, कामणा नरहैघर कांई । बाधे संपति शोभा सवाई. कृपानिधवीनति अवधारो || ९ || नाभिराय कुलवरचन्दा, भव जन मन नयन अनन्दा | ओलगे सुर असुरसुरिंदा, कृपानिधवीनति अवधारी ॥१०॥ जयकारी ऋषभ जिनन्दा, ग्रह समधर परम अनन्दा | वन्दे श्री जिनभक्ति सूरिन्दा कृपानिधवीनति अवधारो ||११|| ने के से मुडदे Wiebeleid te bereketiet tereolokangralVottag
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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