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________________ Rssakakakkartastiboritertaalotarashatantracetheatestasthaayatastestrotatoesktopatsettikkasatsshrutisahay १६४ जैन-रनसार बनवत्रत्रतत्रत्रक- प्रतत्रत्रनयनत्रपत्र संस्कृत ज्ञान पूजा (मालिनी छन्द) प्रकटित परमाणे, शुद्ध सिद्धान्त सारे। जिन पति समयेऽस्मिन्, शारदासन्दधान । जगति समय सारम्, कीर्तितः सन्मुनीन्द्रैः । स वसतु मम चित्ते, सश्रुत ज्ञान रूपं ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रुत पूजन ज्ञानाय नमः ॥ यह पढ़ पुस्तकों के ऊपर कुसमाञ्जली (चढ़ावे ) उछाले । जल पूजा (द्रुत विलम्बित छन्द) अतुल सौख्य निधान मनायिकं, शिव पदं विपदन्ति करं परं। जिगमि पुर्जिननाथ मुखोद्गतं, समय सार महं सलिलैर्यजे ॥१॥ ॐ ह्रीं, मति श्रुतावधि मनपर्यव केवलज्ञानेभ्यो जलं यजामहे स्वाहा ॥ ( यह पढ़कर जल चढ़ावे ) चन्दन पूजा (द्रुत विलम्बित छन्द) विषमयारिक सप्तम विन्द्यया, त्रिभुवनं प्रति बोध मयन्नयन् । उदय मन्त्र गतो वर चन्दनैः, समय सार सहस्र करोऽचिंते ॥१॥ ॐ ह्रीं मति श्रुतावधि मनपर्यव केवल ज्ञानेन्यो चन्दनं यजामहे स्वाहा ॥ ( यह पढ़कर चन्दन चढ़ावे) पुष्प पूजा ( द्रुत विलम्बित छन्द) शुभ पदार्थ मणी द्युतिभिद्युतम्, प्रहत दुईर मोह तमोभरं । समय सार निधिवदरिद्रतां प्रशमनाय महामिसरोरुहैः ॥१॥ ॐ ह्रीं मति श्रुति अवधि मनपर्यव केवल ज्ञानेभ्यो पुष्पं यजामहे स्वाहा ॥ (यह पढ़कर पुष्प चढ़ावे ) धूप पूजा [ द्रुत विलम्बित छन्द ] दृगबबोधसुवृत्त महौषधं, शमित जन्मजरामरणामयं । अगुरभिर्गुरु भक्ति भरादह, समयसारमसार हरं यजे ॥१॥ ॐ ह्रीं मति श्रुति अवधि । मनपर्यव केवल ज्ञानेभ्यो धूपं यजामहे स्वाहा ॥ ( यह पढ़कर धूप खेवे ) RastritrakarKERAIKOuratikshakakahikarilesianRaicliliariaNEHAKARMilinomiadiadalatakikarishtott a प्रत्रप्रपत्र rinakaithakakolatikahikarada-Rattactatina
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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