SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ అంద charithaharashtakడుదురుచatheritalactites marnamannarranmeramanarare.. sahakatathakhatatalalalatakhatawket-listinatikahiki fikalipak h विधि-विभाग सद्दर्शनाय नमः । ५२ बलाभियोगाकार युक्त श्री सद्दर्शनाय नमः । ५३ सुराभियोगाकार युक्त श्री सदर्शनाय नमः । ५४ कांतार वृत्याकार युक्त श्री सद्दर्शनाय नमः । ५५ गुरु निग्रहाकार युक्त श्रीसद्दर्शनाय नमः ५६ सम्यक्त्व चारित्र धर्मस्य मूलमिति चिंतन रूप श्री सद्दर्शनाय नमः । ५७ चारित्र धर्म पुरस्य द्वारमिति चिंतन रूप श्री सद्दर्शनाय नमः । ५८ चारित्र धर्मस्यप्रतिष्ठानमिति चिंतन रूप. श्री सद्दर्शनाय नमः । ५९ चारित्रधर्मस्याधार चिंतन रूप श्री सदर्शनाय नमः । ६० चारित्र धर्मस्य भाजनमिति चिंतन * रूप श्री सद्दर्शनाय नमः । ६१ चारित्र धर्मस्य निधि सन्निभूमिति चिंतन | रूप श्री सद्दर्शनाय नमः । ६२ अस्ति जीवेति श्रद्धान स्थान युक्त श्री सद्दर्शनाय नमः। ६२ सत्य जीव नित्येति श्रद्धान स्थान युक्त श्री सद्दर्शनाय नमः । ६३ सत्य जीव श्रद्धान स्थान युक्त श्री सद्दर्शनाय नमः । ६४ सत्य जीव कर्माणि करोतीति श्रद्धान स्थान युक्त श्री सद्दर्शनाय नमः । ६५- सत्य जीव कर्माणि वेदयतीति श्रद्धान स्थान युक्त श्री सद्दर्शनाय नमः। ६६ जीव स्यास्ति निर्वाणमिति श्रद्धान स्थान युक्त श्री सदर्शनाय नमः । ६७ अस्ति पुनर्मोक्षोपयेति श्रद्धान स्थान युक्त श्री सद्दर्शनाय नमः । दर्शन पद चैत्यवन्दन हुय पुग्गल परियट्ट अड्ड परमित संसार । गंठि भेद तब करि लहे। सब गुण आधार ॥१॥ क्षायक वेदक शशि असंख उपशम पणवार । विना जेण चारित्र णाण, नहिं हुए शिव दातार ॥२!! श्री सुदेव गुरु धर्म नीए । रुचि लंछन अभिराम । दरशन कं गणि हीर धर्मअहनिश करत प्रणाम॥३॥ दर्शन पद स्तवन रामचन्द्र के बाग आवो मोह रह्योरि (ए चाल ) देवें श्री जिनराज । गुरुते साधु भण्योरी । धर्म जिनेश्वर प्रोक्त। लंछण बोधि तणोरी ॥१॥ वोध लाभ के काज । सप्तम नरक भलो री । तेण बिना सुरलोक । तासे अधिक बुरोरी ॥२॥ मिथ्या तापे तप्त, बोध ही छांह लहेरी । उपशम ___* ६७ भेदों करके सहित जीव सम्यक्त्वी होता है। isatttailabletastakalkatahkkakkakkakkakisthatantahshaasiilashtaknhataishali takalaletaterate tath totatute t-te telytones
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy