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________________ meritritootent १५० जैन-रत्नसार गुण सम्पन्नाय नमः | ५२ श्रीगणावच्छेदक स्तुति करण रूप विनयगुण सम्पन्नाय नमः । एकादश पढ़ १ सर्वतः प्राणातिपात विरमणत्रत धराय नमः | २ सर्वतः मृषावाद चिरमणत्रत धराय नमः | ३ सर्वतः अदत्तादान विरमणत्रत धराय नमः । ४ सर्वतः मैथुन विरमणत्रत धराय नमः | ५ सर्वतः परिग्रह विरमणव्रत धराय नमः | ६ सम्यग्क्षमा गुणधराय नमः | ७ सम्यग्मार्दव गुणधराय नमः । ८ सम्यगावगुण धराय नमः । ९ सम्यग्मुक्ति गुणधराय नमः | १० सम्यग्तपो गुणधराय नमः | ११ सम्यग्संयम गुणधराय नमः । १२ सम्यग्वोधि दर्शन गुणधराय नमः | १३ सम्यग्सत्य गुणधराय नमः | १४ सम्यसौम्य गुणधराय नमः | १५ सम्यकिंचन गुणधराय नमः | १६ सम्यग्नह्मचर्य गुणधराय नमः | १७ विगत प्राणातिपाताश्रवाय गुणवते नमः | १८ विगत मृषावादाश्रवाय गुणवते नमः | १९ विगत अदत्तादानाश्रवाय गुणत्र नमः | २० विगत मैथुनाथवाय गुणवते नमः । २१ बिगत परिग्रहाश्रवाय गुणवते नमः | २२ श्रोत्रेन्द्रिय विषय विरक्ताय चारित्र गुणवते नमः । २३ घ्राणेन्द्रिय विषय विरक्ताय चारित्रगुणवते नमः | २४ चक्षुरिन्द्रिय विषय विरक्ताय चारित्र गुणवते नमः | २५ रसनेन्द्रिय विषय विरक्ताय चारित्र गुणवते नमः | २६ स्पर्शनेन्द्रिय विषय विरक्ताय चारित्र गुणवते नमः | २७ विजित क्रोधाय चारित्र गुणवते नमः | २८ विजित मान दोषाय चारित्र गुणवते नमः | २९ विजित माया दोषाय चारित्र गुणवते नमः | ३० विजित लोभ दोपाय चारित्र गुणवते नमः | ३१ मनोदण्ड रहिताय चारित्र गुणत्रते नमः | २२ वचनदण्ड रहिताय चारित्र गुणवते नमः | ३३ कायादण्ड रहिताय चारित्र गुणत्रते नमः | ३४ वसति शुद्ध ब्रह्मव्रतयुक्ताय चारित्र गुणवते नमः | ३५ स्त्रीभिः सह वार्ता वर्जन ब्रह्मत्रत: युक्ताय चारित्र गुणवते नमः | ३६ स्त्री सेवितासन वर्जनब्रह्मत्रतयुक्ताय चारित्र गुणत्रते नमः | ३७ स्त्री रूपावलोकन ब्रह्मत्रत युक्ताय चारित्र गुणवते नमः ।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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