SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ जैन - रत्नसार ******* पोसह का आदेश मांग कर तीन णमोक्कार गिन कर तीन बार पोसह दंडक उच्चरे । तदनन्तर सामायिक मुंहपत्ति का पडिलेहण कर पूर्वोक्त रात्रि संथारा विधि लिखी है उसी तरह सब विधि करे । ******* दिन का पौषध न किया हो और रात्रि का ही करना हो तो प्रथम सब उपगरणों की पडिलेहण कर इरियावहियं • बोले । पीछे चउब्विहार O पच्चऋखाण करके ढ़ो खमासमण पूर्वक पोसह मुंहपत्ति पडिलेहे । फिर दो खमासमण ढ़े पोसह का आदेश मांग कर तीन णमोक्कार गिन कर तीन वार पोसह दंडक उच्चरे । रात्रि चपहरी पौषध पच्चक्खाण करेमि भंते पोसहं आहार पोसहं देसओ सव्वओ सरीरसक्कार पोसहं सव्वओ वंभचेर पासहं सव्वओ अव्वावार पोसहं सव्वओ चउव्विहे पोसहे जावअहोरति पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाएकाएणं णकरेमि णकारवेमि तस्स भंते पडिक्कमामि णिदामि गरिहामि अप्पाणं बोसिरामि । इसके बाद सामायिक मुंहपत्ति का पडिलेहण कर पूर्वोक्त रात्रि संथारा विधि लिखी हैं, उसी तरह सब विधि करे । अन्त में पडिलेहण का आदेश मांगने के बाद अगर पडिलेहण न किया हो तो सब उपधि का पडिलेहण करे और सिर्फ दृष्टि पडिलेहे फिर उच्चार प्रश्रवण के चौबीस थंडिलों का भी पडिलेहण करे । शेष विधि पूर्ववत है । देसावगासिक लेने की विधि प्रथम इरियाही ० १ तस्स उत्तरी• अणत्थ• कहे बाद में एक लोगस्स का काउसग्ग करे फिर लोगस्स ० : कहे । देसावगासिक लंबा मुंहपति पडिलेहू ं मुंहपत्ति पडिलेहण करने के बाद इच्छामि० इच्छाकारेण० देसावासि संदिसाहू इच्छं इच्छामि० देसावगासि ठाउं कह तीन णमोकार गिने इच्छं इच्छामि० इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पसायकरी देसावगासि १-- पृष्ठ ३ । २– पृष्ठ ४ ।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy