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________________ satatakshatralabhatatatatara satata t atisti c s १०४ www win awwwwwwwwwwwmnmarwanawarananmania mmmwwwmnmmmmmmmm FAatisfaktarinlaints a sinila स्वतन्त्रतल्यग्रतत्रत्रप्रणप्रत्रनयनतन्त्रप्रणालमत्रजनप्रणयननननननननननननन जैन-रत्नसार विधि पूर्वक वन्दन करे। पीछे पच्चक्खाण लेकर 'बहुवेलं का आदेश लेवे। पीछे देवदर्शन करने के लिये जिन मन्दिर अवश्य जावे । मन्दिर में जाकर इरियावहियं पूर्वक विधि सहित भाव से चैत्यवन्दन करके पच्चक्खाण करे । जिनमन्दिर, उपाश्रय, ( पौशाल ) आदि से निकलते समय तीन दफा 'आवस्सही कहे तथा प्रवेश करते समय 'णिस्सिही' कहें। पीछे उपाश्रय में जाकर इरियावहियं पडिक्कमे तथा स्वाध्याय या धर्मध्यान करे या व्याख्यान सुने । लघुनीति या बड़ीनीति परठनी हो तो प्रथम 'अणुजाणह जस्सग्गहों कहे पीछे तीन बार 'चोसिरे बोलकर इरियावहियं० कहे । पौन प्रहर* दिन चढ़नेपर एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन उग्घाडा पोरसी करूं ? इच्छं' कहकर एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् !' इरिया वहियं तस्सउत्तरी अणत्थ. कह एक लोगस्स का काउसग्ग पार प्रगट लोगस्स० कहे । फिर एक खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! उग्घाडा पोरसी मुंहपत्ति संदिसाहू ? इच्छं और एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह। भगवन् ! उग्घाडा पोरसी मुंहपत्ति पडिलेहूं ? इच्छं'। ऐसा कह मुंहपत्ति का पडिलेहण करे । पीछे स्वाध्याय या ध्यान करे । जब काल वेला हो तो जिनमन्दिर या उपाश्रय या पौशाल में 'देव वन्दन" करे । अथ देव वन्दन विधि प्रथम एक खमासमण देवे । पीछे इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! शक्रस्तव भणं ? इच्छं । कह शकस्तव (णमुत्थुणं ) कहे । अनन्तर एक खमासमण दे 'इरियावहियं तस्सउत्तरी• अण्णत्थ०१ कहकर एक लोगस्स. का काउसग्ग पार कर प्रगट लोगस्स कहे। पीछे तीन खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन ! चैत्यवन्दन करूं ? इच्छं ।' * सूर्योदय से सवा दो घण्टे तक। + पोसह करनेवाला यदि देवदर्शन न करे तो पांच उपवास के प्रायश्चित्त का भागी होता है, ऐसी शास्त्रोक्ति है। १-पृष्ठ ४। गलतनगणनगनबन्नग्रगणयनमश्रण
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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