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________________ Rohitab-lishyaplesarlalishalob-lish.istialafatalabotaladalanationalata-Ji-filestialistastotilariasJoithalalbatatayeshaalataste जैन-रत्नसार A KH wwvN iasataratmak नयनत्रजनननननननननननननननननननननननननननननननननननननननननननननननननन्त्रक करे । विशेष इतना है कि श्रुत देवताका काउसग्ग करके 'कमलदल विपुल नयना०' श्रुत देवी की थुई कहे बाद 'भुवण देवयाए करेमि काउसग्गं, अणत्य०२' कह के एक णमोक्कार का पार के 'नमोऽहत्०, ज्ञानादिगुणयुतानां०' थुई कहे । फिर बाद में क्षेत्रदेवी का काउसग्ग पार के 'यस्याः क्षेत्र समाश्रित्य.' थुई कहे। इसके अनन्तर नमोस्तु वर्धमानाय०३ का चैत्यवन्दन कर बड़ा स्तवन अजित शांति पढ़े और यहां से पूर्वलिखित देवसिक प्रतिक्रमण के अनुसार विधि करे । पीछे यह विशेष है कि गुरु या श्रावक बड़ी शांति बोले तथा शेष श्रावक सुनें । फिर पूर्वोक्त रीति से सामायिक | पारे । अन्त में दादाजी का स्तवन कह । चौमासी प्रतिक्रमण की विधि पूर्ववत् सामायिक तथा जयतिहुअण५ सम्पूर्ण और वंदित्तु सूत्र पर्य्यन्त देवसिक प्रतिक्रमण करे। बाद एक खमासमण देकर 'देवसियं आलोइयं। पडिक्कता', इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चौमासी लेवा मुंहपत्ति पडिलेहूं ? कहे । बाद गुरु के 'पडिलेहेह' कहने पर, इच्छं कह, एक स्वमासमण दे मुंहपत्ति का पडिलेहण करे तथा दो वन्दना देवे । पीछे जब गुरु कहे 'पुण्यवन्तो, भाग्यवन्तो' छींक की जयणा करना, मधुर वर से प्रतिक्रमण सम्पूर्ण करना, एक बार खांसना दोबार खांसना, मण्डल में सावधान रहना तथा 'पक्खिय की जगह चउमासी कहना' तब तहत्ति' कहे । पीछे खड़े होकर 'इच्छाकारेण संदिसह' भगवन् संबुद्धा खामणेणं अब्भुडिओमि अभिंतर चउमासियं खामेउं ? कहे । गुरु के खामेह कहने पर घुटने टेक कर दाहिना हाथ पूंजनी पर रख तथा मुहपत्ति सहित बायें हाथ को मुख के आगे रखकर 'इच्छं ! खामेमि चौमासियं' कहकर यथा विधि चौमासी प्रतिक्रमण में 'चउण्डं मासाणं अठण्हं पक्खाणं वींसोत्तर सयं राई दियाणं 'जं किंचि अपत्तियं०६' कहे । गुरु जब 'मिच्छामि दुक्कड़ कहे । तदनन्तर खड़े होकर 'इच्छाकारेण संदिसह' भगवन् ! चौमासियं आलोऊ ? १-पृष्ठ २२ । २-पृष्ठ ३।३-पृष्ठ २२ । ४-पृष्ठ ८४।५- पृष्ठ १८ । ६-पृष्ठ २।। Satarakstacakacietstonetarcorrectorotecticket ल लनवलनश्रय यन्त्रप्रत्ययात्रज प्रणय वन नयनयन्त्र
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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