SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Rabidaeoldeedootstatalabtaoiskiokestalestatishetakisekstatestostalesotsabseddakebsteterscalesbalesiasleesastakestabetstateratsiddotke जैन-रत्नसार alడువందhat నందవండ iettinattilanthr అనుమదనపడనందనందనందను एक बार खांसना या दोबार खांसना, मंडलमें सावधान रहना तथा देवसिय की जगह पक्खिय कहना' तब तहत्ति' कहे । पीछे खड़े होकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् संबुद्धा खामणेणं अब्भुट्टिओमि अभितर पक्खियं खामेउँ ? कहे । गुरु जब 'खामेह' कहे तब घुटने टेक, दाहिना हाथ । पूंजनी पर रख तथा मुंहपत्ति सहित बायें हाथ को मुख के आगे रख 'इच्छं खामेमि पक्खियं' कहकर यथाविधि पाक्षिक प्रतिक्रमण में 'पणरसणं दिवसाणं पणरसण्हं राइणं किंचि अपत्तियं०१' कहे । गुरु जब 'मिच्छामि दुक्कडं' कहे तदनन्तर खड़े होकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खियं आलोउं ? कहे । गुरु के “आलोएह' कहने पर 'इच्छं आलोएमि जो मे पक्खिओ अझ्यारो कओ०२' इत्यादि बोलकर वृहद् अतिचार३ बोले । पीछे। 'सव्वस्सवि पक्खिय दुञ्चितिय दुब्भासिय दुच्चिडिय०, इच्छाकारेण संदिसह । भगवन तक कहे । तदनन्तर गुरु कहे 'पक्खिय' चउत्थेण पडिक्कमेह तब 'इच्छं ! मिच्छामि दुक्कड़ बोले तथादोवन्दना देवे। तदनन्तर 'इच्छाकारेण । संदिसह भगवन् देवसियं आलोइय पडिक्कंता पत्तेय खामणेणं, अब्भुद्धि ओमि अभितर पक्खियं खामेउं ? बोले । गुरु जब 'खामेह' कहे तब 'इच्छं! खामेमि पक्खियं जंकिंचि०' का पाठ बोले तथा दो वन्दना देवे ।। तदनन्तर 'भगवन् ! देवसियं आलोइयं पडिक्कता पक्खियं पडिकमावेह' । कहे ! गुरु के 'सम्म पडिक्कमेह' कहने पर 'इच्छं ! करेमिभंते०५, इच्छामि ठामि काउसग्गं०, जो मे पक्खियो', कह एक खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वंदित्तुसूत्र संदिसाहू? कहे । गुरु के 'संदिसावेह'। न पक्खी प्रतिक्रमण को उपवास किये बिना, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण को बेला किये । | बिना और साम्वत्सरिक प्रतिक्रमण को तेला किये बिना नहीं करना चाहिये। ऐसी शास्त्रानुसार रोति है। परन्तु इतना न हो सके तो यथाशक्ति तपश्चर्या करके ही ये तीनो प्रतिक्रमण करना। चाहिये। . * पक्खी सूत्र में पञ्चमहाव्रत और छठे रात्रि भोजन व्रत की आलोयणा है, इसलिये श्रावकों को पक्खी चौमासी सम्वत्सरी प्रतिक्रमण में नहीं बोलना चाहिये । कारण इस सूत्र को | साधु ही बोल सकते हैं। १-पृष्ठ २।२-पृष्ठ ७।३-पृष्ठ २६ । ४-पृष्ठ है। ५-पृष्ठ ३। o n అందdaartattathalaatatatatatalt othialalalitabiliticsEERNMEnterlistedetatatata tak-datossleLY मतगणनप्रणयन्त्र नयनचलनाप्रपनपत्र प्रस्तावना
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy