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________________ sotrostostslettolasahekolatakatriotskeedohsekakkakotthalaadebatesearolesanliantartedaaslelidkeeteelcalesedalisedlelialekaledolerkeletaste जैन-रत्नसार winwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww सल्तनत्रजनप्रमाणप्रत्रनयनतनयन्त्रण SAlastisabitaITERSTACHMarlelectio n मननननननननननननननन्द्रप्रयानमत्रत्रयननयन्त्रणप्रत्रमा स्थान पर 'सामायिक' में हूं ऐसा कहकर तीन णमोक्कार के बदले एक ही णमोक्कार बोलना। संध्याकालीन सामायिक लेने की विधि दिन के अन्तिम पहर में पौषधशाला, उपाश्रय या पौशाल आदि में जाकर या घर में ही एकान्त स्थान में उस स्थान का तथा वस्त्र का पडिलेहण करे । अगर देरी हो गई हो तो दृष्टि पडिलेहण करे फिर गुरु या स्थापनाचार्यजीके सामने बैठकर भूमि प्रमार्जन करके बांयीं और आसन रख, एक खमासमण दे, 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सामायिक लेवा मुंहपत्ति पडिलेहूं' कहे । गुरु के 'पडिलेहेह' कहने पर 'इच्छं' कहकर मुंहपत्ति पडिलेहे । बाद खमासमण दे इच्छाकारेण सामायिक संदिसाहूं ? इच्छं। कहे । फिर खमासमण देकर इच्छाकारेण सामायिक ठाऊं ? इच्छं । कह कर आधा अंग नमा तीन णमोक्कार गिन 'इच्छकारी भगवन् पसायकरी -सामायिक दंडकउच्चरावोजी' कहे । तदुपरान्त तीन बार 'करेमि भंते.१, इरियावहियं०, तस्सउत्तरी०, अणत्थ० कह, एक लोगस्स का काउसग्ग करे। बाद पार के प्रगट लोगस्स०२ तक की सब विधि प्रभातकालीन सामायिक की तरह करे । फिर नीचे बैठकर दो वन्दना देवे । अगर तिविहार उपवास हो तो सिर्फ मुंहपत्ति का पडिलेहण करे, वन्दना न दे अगर चउव्विहार उपवास हो तो मुंहपत्ति और वन्दना दोनों ही न करे । बाद खमासमण दे 'इच्छाकार भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण कराओजी' कहे। फिर 'करेह' कहने पर गुरु के मुख से या स्वयं किसी बड़े के मुख से पच्चक्खाण करे। ___ सामायिक की विधिओं में आये हुए भिन्न भिन्न शब्दों के अर्थ इच्छाकारेण संदिसह भगवन्- हे भगवन् ! अपनी इच्छा से आदेश दो। इच्छं- आप की आज्ञा प्रमाण है। सामायिक संदिसाहूं-मुझे सामायिक करने का आदेश दें। सामायिक ठाऊं-मैं सामायिक लेता हूं। इच्छाकारी भगवन् पसायकरी-हे भगवन् ! अपनी इच्छा से, कृपा करके। सामायिक दंडक उच्चरावोजी–सामायिक व्रत का पाठ मुख से बोलिये। १--यह पाठ पृष्ठ ३ में हैं। २-यह पाठ पृष्ठ ४ में है। -alinielithilitibliniclestlistiantalibosedanliadeLKali-lekANAYEHEME-THEMESTEREONEXT-Estalkse.ta t tatra यजमानत प्रमाणपत्र
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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