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________________ जैन - रत्नसार कहे । फिर खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वेसणं. संदिसाहूँ' ! इच्छं । फिर 'खमांसमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वेसणं ठाऊँ ! इच्छं । फिर खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् सज्झाय संदिसाहूँ फिर खमांसमण देकर इच्छाकारेण संहिसह भगवन् सज्झाय करूं? इच्छं कहकर आठ णमोक्कार गिने । ८४ अगर सर्दी हो तो कपड़ा लेनेके लिये एक खमासमण देकर इच्छाकारेण पांगरणं संदिसाहूं कहे । तब इच्छं कहे । फिर खमासमण देकर 'इच्छाकारेण • पांगरणं पडिग्गहूं ? कहे । तब इच्छं कहकर वस्त्र लेवे । सामायिक या पोसहमें कोई सामायिक या पोसह वाला श्रावक वन्दन करे तो 'बन्दामो कहे' और दूसरे श्रावक वन्दन करें तो सज्झाय करेह कहै । सामायिक पारने की विधि प्रथम चरवला अथवा पूंजनी व मुंहपत्ति ले खड़ा हो एक खमासमण देकर इच्छाकारेण • सामायिक पारवा मुंहपत्ति पडिलेहूं ? इच्छं कह मुंहपत्ति पडिलेहे फिर खमासमण कहे। बाद इच्छाकारेण० सामायिक पारू ? कहे । गुरु के पुणो विकाव्वो कहनेके बाद 'यथाशक्ति कहे फिर खमासमण देकर इच्छाकारेण सामायिक पारेमि ? कहे । जब गुरु 'आयारो णमोaat' कहे तब 'तहत्ति' कहकर आधा अंग नमा खड़े खड़े तीन णमो - क्कार पढ़े । पीछे घुटने टेककर सिर नमा दाहिना हाथ आसन या चरवले पर रख भयवं दसण्णभद्दो० १ आदि पांच गाथा पढ़े। पीछे 'सामायिक विधि से लिया, विधि से पूर्ण किया, विधि करते कोई अविधि हुई हो । दस मन के, दस वचन के, बारह काया के । कुल बत्तीस दोषों में कोई दोष लगा हो तो मिच्छामि दुक्कडं कहे । सामायिक सम्बन्धी विशेष बातें १- सामायिक लेनेके बाद दीपक या बिजलीका प्रकाश शरीर पर पड़ा हो या प्रमाद किया हो तो 'इरियावहियं ०' तस्स उत्तरी• अणत्य० २ कहकर एक १ - यह पाठ पृष्ठ १८ में है । २-यह पाठ पृष्ठ ३ में है ।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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