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________________ อไปันไหนเคยในไพรไ ได้ไงไม่ไหลไดไไ ได้ ไคนไหนูไม่ไป โตไคนในคดูไนไพงไหล ไกในในใจ ไพในไอได้ไหงไม่ได้ใช้ ณ ปัจในปัดได้เงได้ให้ใครไทยให้ได้ไม่ได้ใช้ ไปไหนไปดูได้ในไดไไดได้ใจผู้ได้ไงได้ใจดในใจไทยทัศไนไตตั้นได้ในไดไไไไไไไงใครได้ไพได้ใจไดไฟ ไฟไปให้ไดได้ไพไดได้ไงไงไงไงไงให้ได้คงได้ไพได้ไปัจจใสปันได้ไงให้ไดได้นี้ไม่ได้ใสให้ได้ไง जन-रखसार ण च इजइ चालेउ, महइ महावडमाण जिणचंद्रो । उवस्मन्ग सहस्सेहिवि, मेरु जहा बाय गुंजाहिं ॥४॥ महाबुद्धिमान जिनामचन्द्रवत् महावीर हजारों उपद्रवॉक होते हुए भी वायु के झोकों से मेरु की तरह जरा भी विचलित न हुए ॥ell भही विणीय विणआ, पढम गणहरी समत्त मुयणाणी । जाणतावि त मत्यं, विम्हिय हिया मुणइ सव्वं ॥५॥ कल्याणकारी विनयवन्त और समस्त श्रुत ज्ञान के जाननेवाले प्रथम गणधर गौतम स्वामी उस अर्थ को समझते हुए भी विस्मत (ध्यानपूर्वक) हृदयस मुनते थे ||५|| जं आणइ राया पवइओ, तं सिरण इच्छंति । झ्य गुरुजण मुह भणियं, कयंजली उडेहि सायब्वं ॥६॥ राजा की आज्ञा का अनुचर लोग बड़े श्रम से पूर्ण करने की इच्छा करते हैं, ठीक उसी तरह गुरुजनों के मुख से कही हुई बातों को दोनों हाथ जोड़कर सुनना चाहियं ॥६॥ जह मुर गणाण इंदा, गहगण तारागणाण जह चंदा । जय पयाण परिंदो, गणम्स वि गुरु तहाणंदो ||६|| जिस तरह इन्द्र देवताओं को, चन्द्रमा ग्रह ताराओं को, राजा है प्रजाओंको मुख प्रदान करते हैं उसी तरह गुरु अपने गच्छमें (शिष्यवर्ग) को आनन्द दिया करते हैं ॥७॥ वालुन्ति महीपाला णपया, परिहवइ एस गुरु उबमा ! जंबा पुरओ कार्ड, विहरति मुणि तहा सोवि ॥८॥ प्रजा जिस तरह बालक ग़जा का भी तिरस्कार नहीं करती है उसी तरह अवस्था अथवा चारित्र में छोटे होनेपर भी मुनि, साधु, यति, श्रमण, निरअन्य आदि नामवालों को सबक आगे आचार्य पद दनक बाद मुनि उन्हें अपना गुरु समझ कर साथ विचरते हैं। पडिरूवा तेबस्सि, जुगप्पहाणागमा महुरबको । गम्भीरी घिइमंती, उबएसपरो य आयरिओ ॥९॥ มีผู้ใด ไม่ไปไหน ไป ใจหนึ่งในสไตไตใหญ่ใจนไอสไอไม่ให้ผู้ใด ไม่ได้ไปไหน สไนไตรงไห้ไป ไอนในไตไดไไดไไg
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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