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________________ भूमिका ७९ पूर्व काल में सैयिदों के अभ्यस्त एवं रखी वस्तुओं के लूटे जाने के अनुभवी, पुरवासी लोग भयभीत होकर, गृह सम्पत्ति को पुर से गाँवों में रख दिये । ( ४४५९) नगर में लूट होने लगी । नगरी मुषित वारांगना सदृश, उत्तम नही रह गई । (४ : ४६०) मार्गेश सुल्तान सहित गुसिकोड्डार में शिविर लगाया । ( ४:४३१) सेना को तीन भागों में विभक्त किया। ( ४:४३२) खान मार्गेश ने उसका पीछा किया । खान भी खान मरुग स्थान पर स्थित हो गया ( ४:४६३) कल्याणपुर गया विचित्र स्थिति थी खान पक्ष में काश्मीरी और विदेशी थे सुल्तान पक्ष में केवल कायमीरी थे । (४:४६६) खान तथा सुल्तान की सेना में विकट वृद्ध होने लगा। मार्गेश ने अद्भुत रणकौशल का परिचय दिया। काश्मीरी सेना पलायित हो गयी। परन्तु इस झूठी अफवाह के सुनते ही पुनः छोटी खान गिरफ्तार हो गया है। (४.४८६) पान के शिविर में अव्यवस्था फैल गयी। शृंगार सिंह आदि काश्मीरी सैन्य में उत्पन्न नवीन उत्साह देखकर भाग खड़े हुए। पलायित सेना को खसों तथा डामरों ने खूब लूटा | संघर्ष के पश्चात् जहाँगीर मार्गेश सुल्तान को साथ ले जमाल मरुग पहुँचा । ( ४:५११) सन्देह पर, मगल नाड ग्राम जला दिया गया । ( ४:५१२) लोगों के पास तन ढकने के लिए वस्त्र नही रह गया । ( ४:५१५ ) मार्गेश युद्ध में विजयी हुआ। श्रीनगर में विजयोत्सव मनाया गया । खान पक्ष में गये लोगों को दण्डित किया गया । खान का द्वितीय बार प्रवेश : भैरव गल में स्थित खान ने द्वितीय बार पुनः काश्मीर प्रवेश का विचार किया। (४.५२४) दो मास रहकर, सैनिकों के साथ उसका पुन. आगमन हुआ । शूरपुर पहुँचा । जहाँगीर मार्गेश सुल्तान सहित सामना हेतु आया । ( ४:५२६ ) इस समय का बन्धन मुक्त सेफ डामर खान से मिल गया । मुख्य सलाहकार बन गया। (४:५४२) मार्गपति ने पुनः सन्धिहेतु खान के पास दूत भेजा । ( ४:५४८ ) खान की सेना मे फूट पड़ गयी। खान भयभीत हो गया । सेना सहित पीछे हट गया । ( ४.५५५) काश्मीर मण्डल की बुरी अवस्था थी । शासन व्यवस्था नही रह गयी थी । परस्पर ईर्ष्या-द्वेष के कारण, जो जिसे चाहता, मार देता था। न्याय का दर्शन दुर्लभ था । नगर मे डेढ़पल नमक का मूल्य २५ दीनार हो गया था । ( ४-५७९) खान का तृतीय बार कश्मीर प्रवेश लोकिक वर्ष ४५६२ सन् १४८६६० मे खान ने काश्मीर मे तृतीय वार मार्गेश ने अपनी शक्ति ठीक न देखकर, कुटिल नीति अपनायी (४०५८०) दौहित्र खान मोर सिकन्दर का कम्पनाधिपति बनाया। स्थाम ( सैनिक छाउनी) मे भेज दिया । (४.५८१) भैरव गलत स्थान पर खान पहुँच गया। मार्गेश शूरपुर में उसका मार्गांवरोध करने के लिए सुल्तान के साथ पहुँचा। ( ४:५८४) बावण मास में खान काचगल मध्य पहुँच गया (४:५८६) खान तथा मार्गे की सेना में कुछ संघर्ष हुआ। युद्ध में कुछ सैविद सैनिक, जो सुस्तान के पक्ष में में मारे गये (४:५९१) मुसि । - कोडर में युद्ध हुआ। धीवर लिखता है तो सैविद के युद्ध में, और न खान के भट क्षय नहीं हुआ, जैसा कि गुसिकोड्डार के युद्ध में हुआ ।' (४.५९३ ) इस स्थिति का दुर्बलों को पीडित करने लगे । - प्रवेश का विचार किया। मार्गेश ने हाजी खाँ के प्रथम युद्ध मे बैसा लाभ उठाकर बली खान के विदेशी सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। ( ४:६०४) खान पुन: लौट गया। झूठी अफवाह फैलायी गयी। सुल्तान की सेना ने खान को बन्दी बना लिया। ( ४:६०५ ) खान की सेना का साहस टूट
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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