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________________ भूमिका ७७ मद्र ब्यूह बद्ध हो गये । सैयिदों से पुनः युद्ध आरम्भ हुआ। (४:२६५) परशुराम ने युद्ध के प्रारम्भ में सामयिक भाषण दिया-'हे वीरो! समर में प्रसन्नता पूर्वक युद्ध करो। पीछे मत हटो। ये निर्दयी सैयिद विजयी होंगे, तो क्रोध के कारण सर्वस्व हर लेंगे। यदि विजय प्राप्त करोगे, तो अपने वैभव से सुख मिलेगा।' (४:२६६) मद्रों और सैयिदो के मध्य घनघोर युद्ध होने लगा। मद्र एवं काश्मीरी वीर एक साथ युद्ध रत थे। दोनों का लक्ष्य सैयिदों का पराभव था। (४.२७२) सैयिद सम्मिलित सेना के सम्मुख टिक नही सके । काश्मीरियों की विजय हुई। (४:२८५) समुद्र मठ से पूराधिष्ठान तक शवों के समूह इन्धन के समान पड़े थे । (४:२८८) रुद्र बिहार मे सैयिदों ने अग्निदाह किया था। इससे क्रुद्ध होकर मार्गपति ने अलाभपुर जलाने के लिये आग लगा दी। (४:३१५) सैयिद हमदान का खानकाह भी अग्नि दाह में भस्म हो गया (४:३१७) इस भयंकर स्थिति में चाण्डालों ने नगर लूटा। (४:३१८) दरिद्र अमीर और अमीर दरिद्र हो गये । (४:३१९) युद्ध भूमि मे पड़े शवों पर जो आभूषण या कुछ द्रव्य थे, उसे भी लोगों ने लूट लिया। (४:३२०) लुटेरे परस्पर लूट के लिए लड़ने लगे। मत्स्य न्याय प्रच्छन्न हो उठा। (४:३२१) विटों ने कुमारी कन्याओं एवं स्त्रियो के साथ बलात्कार किया। (४:३२६) दस्यु लोग मदमत्त होकर लोगों को पीड़ित करने लगे। (४:३२८) कितने ही लोगो का संचित धन नष्ट हो गया। कितने वन्धु वियोग से दुःखी हो गये। कितनों की भूमि जबर्दस्ती छीन ली गयी । (४:३३३) सौ में कोई एक सुखी था। लौ० ४५६० = सन् १४८४ ई०, के श्रावण मास मे यह विजय प्राप्त हुई थी। इस युद्ध मे लगभग दो सहस्र व्यक्ति मारे गये थे। (४:३३२) श्रीवर उपसंहार मे लिखता है-'सैयिद वध से पहले अंकुरित, क्रम से पल्लवित, पारस्परिक वैर वृक्ष, उस दिन फलित हो गया' । (४:३३३) आततायी पुरवासियों को दुःखी करते थे। लोगों की कृषि फल हर लेते थे । बार बार भूमि में फलयुक्त वृक्षों का इन्धन के लिये तुरन्त उच्छेद किया गया। इस प्रकार सैयिदों के द्वेष के कारण चारों ओर प्रवरपुर मे महान उपद्रव हुआ। (४:३३४) काश्मीरियों द्वारा त्यक्त अली खा प्रमुख सैयिद नाम मात्र के लिये अवशिष्ट रह गये। (४:३३५) मन्त्रियों ने मरुतों के समान, उस बाल चन्द्र (सुल्तान) को, सैयिद रूप मेघ पुंज से रहितकर, पुरवासियों को आनन्दित किया। (४:३४०) मन्त्रियों ने सब सम्पत्ति अपहृत कर, कुटुम्ब सहित अली खान आदि सैयिदों को मण्डल से निर्वासित कर दिया। (४:३४४) काश्मीरी मन्त्रियों के एक मत हो जाने पर, अविशंकित परशुराम सत्कार प्राप्त कर, अपने देश (मद्र) लौट गया। (४:३४४) विधाता के विपरीत होने पर, कहीं गति नहीं है । (४.३९४) शिशु सुल्तान सैयिदों के कठोर हस्त से मुक्त हुआ। (४:४३९) खानविप्लव: 'पूर्व के सैयिद विप्लव की अपेक्षा खान का यह विप्लव बड़ा था। पाद रोग की अपेक्षा, गले का रोग अधिक भयावह होता है । (४:४४५) यह विप्लव लौकिक वर्ष ४५६१ = सन् १४८५ ई० में हुआ था। (४:४९९) आदम खा का फतह खां पुत्र, जैनुल आबदीन का पौत्र तथा सुल्तान मुहम्मद खां का चाचा था। ज्येष्ठ पुत्र होने पर भी आदम खां राज्य प्राप्त नहीं कर सका । मझला भाई हैदर शाह सुल्तान बन गया । हैदर शाह के पश्चात् उत्तराधिकार उसी के वंश मे चलता गया । मुहम्मद शाह उसका पौत्र था । जैनुल आबदीन का प्रपौत्र था। फतह खां ने अपने पैतृक राज्य प्राप्त करने का संकल्प किया। आदम खां की मृत्यु मद्र मण्डल में हो हो गयी थी। वही फतह खां शिवरात्रि के दिन पैदा हुआ था । आदम खां राजा मद्र के पक्ष से युद्ध करता
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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