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________________ भूमिका मैं यह नहीं हूँ, 'मैं यह नही हूँ' इस प्रकार कहने लगे । म्लेच्छों की प्रेरणा से राजा ने वहु खातक प्रमुख इष्ट देवो की, मूर्तियों को तोड़ने का आदेश दिया। गुण परीक्षा के कारण जैन राजा ने जिन लोगों को भूमि दी थी, उनसे उसके अधिकारियों ने अकारण ही हृत कर लिया । (२:१२३-१२७) हैदर शाह के पश्चात् उसका पुत्र हसन शाह सुल्तान हुआ। उसके समय में प्रतिमा भंग का क्रम जारी रहा-'राजा ने अर्ध निष्पन्न प्रतिष्ठा, को निलुंठित कर, नगर मे पिता के पुण्य के लिये खानकाह निर्मित कराया।' (३:१७७) भारतवर्ष में भी जहाँ मन्दिर नष्ट किये जाते थे, वहाँ जियारत, खानकाह, मसजिद अथवा कब्रिस्तान बना दिया जाता था। यह क्रम जैनुल आबदीन के पश्चात् पुनः जारी हो गया । सुल्तान निरंकुश था । उसपर किसी सभा, परिषद् आदि का वन्धन नही था। उसकी इच्छा ही उसका न्याय था। किसी को अनायास बिना न्याय का अवसर दिये, बिना इन्साफ किये, दण्ड देना, साधारण बात थी। पूर्ववती हिन्दू राजाओं तथा सुल्तानों के न्याय के विषय मे विशेष चर्चायें की गयी है। परन्तु श्रीवर ने अपने समकालीन हैदर शाह, हसन शाह तथा मुहम्मद शाह की न्यायप्रियता के विषय मे कुछ नहीं लिखा है। जैनुल आबदीन न्यायप्रिय सुल्तान था। इसमें सन्देह नहीं है। किसी को कारागार में रख देना, साधारण बात थी। क्रोधित होकर, सुल्तान हसन ने अवतार सिंह आदि को बिना न्याय किये, कारागार मे रख दिया। (३:१००) अनेक प्रतिहार गण सुल्तान का कोप भाजन होने पर, कारागार में रख दिये गये । तत्पश्चात् उनकी आँखें फोड़ दी गयी। (३:१३१) दो वर्ष जेल में रहकर, वही बहराम खां की तरह मारे गये । (३:१३५) बहराम खां का पुत्र युसुफ था। वह निर्दोष था। पिता के कारण, राजवंशीय होने के कारण, बन्दी बना दिया गया। वह निर्दोष, मुक्त होते ही, मार डाला गया। सेनाधिकारिया एव मन्त्रियों को भी इसी प्रकार, बिना विचार, कारागार में डाल दिया जाता था। (३:३९९) सम्पत्ति हरण सामान्य बात थी। सुल्तान असन्तुष्ट होने पर, किसी दिन के प्रिय पात्रों, मत्रियों एवं सामन्तों की सम्पत्ति बिना विचार, हरण कर लेता था। (३:१४८) सुल्तान किसी के सम्मुख उत्तरदायी नहीं था। निरंकुश था। मंत्री भी सत्ता पाकर निरंकुश हो जाते थे । विरोधियों किंवा जिनपर किंचित मात्र शंका होती थी, उन्हे निर्वासित कर दिया जाता था । (३:१५५) काल गणना: श्रीवर पहला समय सप्तर्षि ४५३५ = सन् १४५९ ई० जोनराज की मृत्यु का देता है। ४५४६ सन् १४७० ई० = सप्तर्षि लौकिक संवत् ४५४६ जैनुल आबदीन की मृत्य का उल्लेख करता है । सन् १४५९ से १४७० ई० के मध्यवर्ती काल मे समयों के घटना क्रमो से लौ० ४५३८ = १४६२ ई० (१:३:२), लौ० ४५३९ = सन् १४६३ ई० (१:५:३९), लौ० ४५३९ - सन् १४६३ ई० (१:५:८९), लौ० ४५४० = १४६४ ई० (१:१:७६, १:१:७७) दिया है । इनके बीच उसने लौ० ४४९६ = सन् १४२० ई० (१:७:२२४), लौ० ४५१५ = १४३९ ई० (१:५:४), लौ० ४५२८ = १४५२ ई० (१:७:८६,१:३:९३), लौ० ४५३३ = १४५७ ई० (१:३:११५), लौ० ४५३५ = १४५९ ई० (१:३:९३) लो० ४५३६ = सन् १४६० ई० (१:३.२), लौ० ४५३८ = सन् १३६२ ई० (१:३:२), तथा लो. ४५३९ = सन् १४६३ ई० दिया है। लौकिक या सप्तर्षि संवत् ४५४६ = सन् १४७० ई० के पश्चात् श्रीवर ने काल गणना, क्रमानुसार
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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