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________________ भूमिका ५७ शव यात्रा तथा शवदाह पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। अस्थियों को प्रवाहित करने की आज्ञा नहीं थी । प्रतिबन्ध हटने पर, श्रीवर प्रसन्न शब्दों में वर्णन करता है- 'हम लोग प्रतिबन्ध रहित हो गये'इसलिये मानो शिविका नाच रही थी, जिनके साथ में छप लिये एवं याच ध्वनि करने वालों को किन लोगों ने नहीं देखा ? ' (१:५:६० ) हिन्दुओं की अन्येष्टि क्रिया भारतवर्ष में शास्त्रानुसार होती है। वहीं कहीं लौकिक कुछ रीति रिवाज भी थे । उनका यथास्थान वर्णन किया गया है । - अन्त्येष्टि एवं शोक : 1 मुसलमान लोग कब्र में शव दफन करते हैं। शव यात्रा की प्रथा हिन्दू मुसलमान दोनों में थी । शिविका का प्रयोग हिन्दू एवं मुसलमान दोनों करते थे । जैनुल आबदीन के प्रसंग में श्रीवर लिखता है - 'करणी रथ पर स्थित, शव पर चलते, छत्र एवं चामर के व्याज से मानों शोक के ही कारण, सूर्य एवं चन्द्रमा आकाश में विचलित हो रहे थे । ( १ : ७ : २२२ ) जो शव एवं शिव हो गया था, उसे रोते मन्त्री छत्र एवं चामर से शोभित करके, शिविका में शवाजिर ( कब्रिस्तान) ले गये ।' ( १:७ : २२६) मुसलमानों में मृत्यु पश्चात् रोने की प्रथा नहीं है। परन्तु हिन्दू प्रथा के अनुसार, उस समय लोग रोते थे शोक मनाते थे— 'रोते पुर वासियों के कारण उत्पन्न, तीव्र रोवन की ध्वनि से मानो अत्यधिक शोक के कारण, दिशाएँ ही आक्रन्दन से मुखरित हो उठीं। ( १:७:२२८) जैनुल आबदीन की मृत्यु के समय लोगों के शोक रुदन आदि का वर्णन श्रीवर करता है इसी प्रकार पुत्र सुल्तान हैदरशाह की मृत्यु पर भी कहता है- 'उसके सेवक, स्वामी के अनुग्रह का स्मरण करके, वक्षस्थल पीटकर, रुदन कर रहे थे, जिससे दिशायें मुखरित हो रही थीं ।' (२:२१२ ) नरेश्वर को कर्णीरथ ( ताबूत) से उठाकर एक वस्त्र से परिवेष्ठित कर पिता (सिकन्दर बुत शिकन) के पास भूगर्भं (कन ) में रख दिया । अपने मुस्लिम आचार के कारण, मुखावलोकन करके, सब लोग मुट्ठी भर मिट्टी डाले । ' (१:७:२३२) मरने पर दान करने की प्रथा थी । हिन्दू लोग महापात्र को दान देते हैं । गरीबों को भोजन कराते हैं । सुल्तान हैदरशाह ने कब्रिस्तान में ही, पिता को मिट्टी देने के पश्चात्, सालौर ग्राम ग्रीष्म ऋतु में लोगों को पानी पिलाने के लिए दान किया था। इसी प्रकार अनेक पौसरों अर्थात् प्याऊ चलाने के लिए भूमि दान किया । (१:७:१५०, १५१ ) सुल्तान हैदरशाह की स्त्री तथा सुल्तान हसनशाह की माँ गोला खातून की मृत्यु पर, उसके स्मरण एवं पुण्य हेतु - - ' सुल्तान ने उस (माता) के पुण्य समृद्धि के लिए, उसके घन द्वारा शाहेभदेनपुर ( शहाबुद्दीन पुरी) के अन्दर नवीन विशाल नोका पुल बनाने का आदेश दिया । ( ३:२१९ ) सुल्तान ने अपनी माता के पुण्य के लिए दान भी किया। बीमारी के समय दान पुण्य करने की प्रथा प्रचलित थी । ब्राह्मण और मुसलमान दोनों को दान दिया जाता था परन्तु हसनशाह की मृत्यु पर सैंथियों ने दान ब्राह्मणों को न देकर, केवल सैयिदों को दिया । शोक काल में काला वस्त्र पहनने की प्रथा मुसलमानों में थी । उल्लेख मिलता है कि हसनशाह अपनी माता की मृत्यु के पश्चात् सात दिन तक शोक मनाया और काला वस्त्र धारण किया । ( ३:२१७, २१८) हसनशाह की मृत्यु के समय भी सात दिनों तक शोक मनाया गया था - 'प्रात: प्रातः आकर सात दिनों तक, सैयिदों ने रुदित ध्वनि से निश्रित करके वेदों (कुरान शरीक) का अध्ययन किया ।' (३:५५९) कब्र के ऊपर तत्पश्चात् एक बड़ा सुन्दर गढ़ा शिला खण्ड रख दिया गया । ( १:७:२५६) शुक्रवार के दिन लोन सुल्तान के कब्र पर एकत्रित होते थे। ८
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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