SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनराजतरंगिणी सामाजिक स्थिति : समाज अवनति की ओर बढ़ रहा था। चरित्र का लोप हो रहा था । भ्रष्टाचार व्याप्त था। जैनुल आबदीन के समय काश्मीर जितना ही उठा था, उसकी मृत्यु के पश्चात् उतना ही गिरने लगा। जैनुल आबदीन काल का वर्णन करते श्रीवर लिखता है-'जैनुलआवदीन के राज्य मे प्रजा षड्दर्शन रत, स्वधर्म निरत, आतंक रहित एवं ईति भय मुक्त थी।' (४.५०२) सिकन्दर बुत शिकन के अत्याचार एवं धर्मोन्माद के कारण हिन्दुओं की स्थिति अत्यन्त बिगड गयी थी। जैनुल आबदीन ने पिता की नीति त्यागकर, सहिष्णु नीति स्वीकार किया था। श्रीवर लिखता है-'कुछ समय पूर्व पृथ्वीपति सिकन्दर ने यवनों से प्रेरित होकर, समस्त पुस्तकों को, तृणाग्नि के समान पूर्णरूप से जला दिया। उस समय मुसलमानों के तेज उपद्रव के कारण, सब विद्वान् समस्त पुस्तकें लेकर, दिगन्तर (विदेश) चले गये। अधिक क्या वर्णन करें, इस देश मे ब्राह्मणों की तरह सभी ग्रन्थ, उसी प्रकार कथा शेष रह गये, जिस प्रकार हिमागम के समय कमल । सुमनोवल्लम नप (जैनुल आबदीन) ने पृथ्वी को भूषित कर, उसी प्रकार सबको नवीन बना दिया, जिस प्रकार वसन्त ऋतु भ्रमरों को' (१:५:७५-७८) । जैनुल आबदीन के समय देश विकसित था। आर्थिक व्यवस्था सुदढ थी। उसके परिश्रम का लाभ, उसके पुत्र तथा पौत्रों ने उठाया। विदेशी आक्रमणों से निरापद होने के कारण सौराज्य से सुखी लोगों में विवाहोत्साव, सुन्दर भवन, नाटक,यात्रा,मंगल कार्यो, के अतिरिक्त दूसरी चिन्ता नही होती थी। (३:१७०) फल यह हुआ कि समाज गिरता गया । उस राजा के स्वर्ग गत होने पर, इस मण्डल मे आचार-विचार नष्ट हो गया (४:५०३)। दुर्बल सुल्तान स्त्रियों के चक्कर में पड़ गये थे। श्रीवर लिखता है कि हसन शाह का राज्य स्त्री के आधीन देखकर, सशोक लोग यह श्लोक पढ़ते देखे गये-'बिना नायक लोक का विनाश हो जाता है, शिशु जिनका नायक होता है, उनका नाश होता है, स्त्री नायक वालों का विनाश होता है और वहुनायक वालों का नाश होता है । (३:४७३-४७४) राजप्रासाद मे स्त्रियों की इतनी प्रधानता हो गयी थी कि हसन शाह की बीमारी का दुखान्त वर्णन श्रीवर करता है-'स्वामी को देखने नहीं देते। स्त्रियाँ ही अन्दर जाती थी, तत-तत गारुडिको के कहे गये, मन्त्र पाठ निषेध करते थे। वैद्यों की ही चिकित्सा को अन्यथा कर देते और अपने द्वारा बनायी गयी, खाने की गुलिका देते थे।' (३:५४७-५४८) स्त्रियाँ वैद्यों आदि का प्रबन्ध करने लगी थी-'उस समय मैं वैद्य गाडिक एवं दृष्टकर्मा हूँ, कहने वाले, रूप भट्ट को स्त्री वैद्यों ने बुलाया।' (३:५५०) मद्यपान: मद्यपान मुसलिम तथा हिन्दू दोनों में प्रचलित था। मधुशालायें थी। वहाँ सुरापान होता था। श्रीवर वर्णन करता है-वे मधुशाला मे मण्ड, मत्स्य, कुण्डों से मधु पीकर, भाँड़ के समान, मद से उद्दण्ड होकर, श्वासों से भाण्ड बजाने लगे। (१:३:७३) बखारो से चावलों को, घरो से बकरो को, वीटिकाओं से मद्य को लेकर, उन बलकारियों ने स्वयं भोग किया ।' (१:३:७४) उक्त उद्धरणो से प्रकट होता है कि मधुशालायें थी तथा वीटिकाओं पर भी शराब बिकती थी। काश्मीरी यद्यपि मुसलमान हो गये थे, उनके लिए शराब पीना हराम था, तथापि शराब का जितना प्रसार इस काल में हुआ, इतना पूर्व काल में नही था। सुल्तान जैनुल आबदीन उत्सव या भोज के समयकादम्बरी, (सुरा), क्षीर, व्यञ्जनादि से परिपूर्ण कर, सब लोगो को इच्छानुसार भोजन कराता था। भोजन (१:३:४७) तथा स्वयं पान क्रीड़ा करता था।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy