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________________ २९४ जैनराजतरंगिणी [२: १५०-१५२ राजवृत्तान्तरोधेन स्वपदार्थोपपादकैः । मातुलैरपि तस्याग्रे सुल्हणः कल्हणायितम् ।। १५० ।। १५०. राजवृत्त के अनुरोध से, अपने पदार्थ (कार्य) को सिद्ध करनेवाले मातुल सुल्हणों' ने भी, उसके समक्ष कल्हण जसा आचरण किया। कौमारोद्धंसिकं वीक्ष्य कटकालंकृता अपि । अभूवन् धैर्यरहिता माहिला महिला इव ।। १५१ ॥ १५१. इस कौमार' ध्वन्सी को देखकर, कटकालंकृत (सैन्य सहित) होनेपर भी, वे माहिल' लोग महिलाओं के समान धैर्य रहित हो गये। बद्धपङ्क्तिस्तरन्ती सा ज्यलमेस्तन्नदीतटात् । तत्सेना रामबद्धाब्धिसेतुकौतुकमातनोत् ।। १५२ ॥ १५२ उस नदी तट से (झेलम को) पंक्तिबद्ध होकर, पार करती हुई, उसकी सेना राम द्वारा बांधे गये सेतु का कौतुक पैदा की। पाद-टिप्पणी : कल्हणवंशजों के समान थे। मल्हण के नाम से १५०. (१) सुल्हण : काश्मीर में प्रचलित वंश चलने की सम्भावना नही मालूम होती क्योंकि हिन्दू नाम था। श्री कण्ठ कौल नाम मल्हण माना वह राज्यवंश का ज्येष्ठ पुत्र था। अल्पायु मे दिवंहै। पूर्वकालीन मल्हण राजा दुर्लभवर्द्धन का पुत्र गत हुआ था। सल्हण नाम ही यहाँ ठीक प्रतीत होता है। था ( रा० : ४ : ४)। मल्हणपुर राजा जयापीड (२) कल्हण : द्रष्टव्य : रा०: भाग:१ ने बसाया था। यह वर्तमान प्राम मलुर या मलरो 'कल्हण' पृष्ठ १-४९। है। मल्हण स्वामी का मन्दिर दुर्लभवर्धन के पुत्र पाद-टिप्पणी: ने निर्माण कराया था ( रा० : ४ : ४)। उसके १५१. (१) कौमार : श्रीदत्त ने कौमार को अल्प अवस्था में ही मृत्यु हो गयी थी। वह नामवाचक शब्द माना है और अनुवाद 'कुमार राज्य नहीं कर सका था। उसका भाई दुर्लभक टाउन' किया है। श्रीकण्ठ कौल ने नामवाचक शब्द राजा हुआ था। माता का नाम अनंगलेखा था। नही माना है। श्रीदत्त ने भी सुल्हण ही मान कर अनुवाद भावार्थ : 'कौमार नगर को नष्ट करनेवाले किया है । कलकत्ता एवं दुर्गा प्रसाद दोनों ही सुल्हण राजपुत्र को देखकर सेना सहित होने पर भी माहिल नाम मानते है । अतएव सुल्हण ही मानकर अनु- लोग उसी प्रकार धैर्यरहित हो गये जिस प्रकार वाद किया गया है। सुल्हण राजा सुस्सल का अनु- कौमारध्वन्सी को देखकर माहिल।' कौमारध्वन्सी यायी था, यह नाम प्रचलित था। सुस्सल का राज्य- का अर्थ है, कुमारियों का चरित्र भ्रष्ट करनेवाला। काल सन् १११२ से ११२० तथा ११२१ से ११२८ (२) माहिल : मांझी = हाजी । यह शब्द है। हैदरशाह द्वितीय तरंग के राजा का काल पद्य में अधिक प्रयुक्त किया जाता है। सन् १४७०-१४७२ ई० है। दोनों सुल्हणों के पाद-टिप्पणी : समय में ३४४ वर्षों का अन्तर है। अतएव सुल्हण १५२. (१) ज्यलम : प्रथमबार वितस्ता प्रतीत होता है, प्राचीन सुल्हणवंशीय व्यक्ति, का नाम यहाँ ज्यलम अर्थात् झेलम लिखा गया है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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