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________________ २८० जैनराजतरंगिणी [२: ९९-१०२ द्रव्यं गृहतुरंगादि तेषां तद्राजसादगात् । तत्कुटुम्बैर्निरालम्बै प्ताप्येका वराटिका ॥ ९९ ॥ ९९. उनका गृह, तुरग, आदि द्रव्य, नृपाधीन हो गया और निरालम्ब उनके कुटुम्बियों ने एक कौड़ी भी नहीं प्राप्त की। कोशेशसंचितं स्वर्णपूर्ण रूपकभाजनम् । ___ दृष्ट्वा धिक्कृत्य कृपणं थूत्कारं नृपतिय॑धात् ॥ १० ॥ १००. कोशेश द्वारा संचित, स्वर्णपूर्ण रजतपात्र देखकर, उस कृपण को धिक्कार कर, राजा ने थूत्कार किया। तत्पक्षान् बह्मरागादीन् हतसर्वस्वसंचयान् । कारायामक्षिपद्राजा मुक्त्वैकं सैदहोस्सनम् ॥ १०१ ॥ १०१. राजा ने उसके पक्ष के बहम्रागादि' जनों का सर्वस्व संचय अपहृत कर, एक सैद होस्सन के अतिरिक्त सबको कारा में डाल दिया। अन्ये पित्रपराधेन तस्माद् भृगुसुतोपमात् । क्षत्रिया इव ते सर्वे नाशं प्रापुः पुरातनाः ॥ १०२॥ १०२. पिता के अपराध के कारण परशुराम' सदृश, उस नृपति द्वारा क्षत्रियों के समान, अन्य पुरातन लोग नष्ट कर दिये गये। पाद-टिप्पणी : किया था। भार्गववंशीय थे। पश्चिम भारत में ९९. 'गृह तुरंगादि' पाठ-बम्बई। भार्गववंशीय ब्राह्मण हैहय राजाओं के पुरोहित थे। पाद-टिप्पणी: त्रेतायुग में उत्पन्न हुए थे। त्रेता तथा द्वापर के सन्धिकाल में उनका अवतार हुआ। अट्ठारहों १००. 'थूत्कार' पाठ-बम्बई । पुराणों मे उन्हे अवतार माना गया है ( आदि० : पाद-टिप्पणी : २ : ३)। जमदग्नि का आश्रम नर्वदा तट पर १०१. (१) बहमाग : श्रीदत्त ने इसे नाम था ( ब्रह्मा० : ३ : २३ : २६)। जमदग्नि एक वाचक शब्द मानते हुए 'बहम्राग' शब्द माना है समय रेणका पर कुपित हो गये। परशुराम को (पृष्ठ १९३) । श्रीकण्ठ कौल ने इसे नामवाचक शब्द माता की हत्या करने के लिए कहा। परशुराम ने माना है। इस शब्द का सम्बन्ध किसी राग से नही है। अविलम्ब उसका पालन किया (वन०:११६ : १४)। पाद-टिप्पणी : जमदग्नि प्रसन्न हुए । रेणुका पुनः जीवित हो गयी। १०२. (१) परशुराम : नीलमत पुराण परशुराम को इच्छामृत्यु का वर दिया (विष्णुपरशुराम को भगवान् का अवतार मानता है । महर्षि धर्म०:१:३६ : ११)। परशुराम ने हैहय राजा जमदग्नि के पांचवे कनिष्ठ पुत्र परशुराम थे। माता का वीर्य का युद्ध में उसके शतपुत्रों के साथ वध का नाम रेणुका था। क्षत्रियों का इक्कीस बार संहार किया (ब्रह्मा० : ३ : ३९ : ११९; शान्ति० : ४९ :
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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