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________________ २७० जेनराजतरंगिणी श्रुत्वेत्यवोचन्मत्पुत्रः सत्यं मदनुजाsप्रियः । किं तु ब्रवीमि येनायं रक्ष्यते कुटिलाशयः ॥ ६५ ॥ ६५. यह सुनकर, राजा ने कहा- 'क्या सचमुच मेरा पुत्र मेरे भाई को अप्रिय है ?' किन्तु वह कहता हूँ, जिसके कारण इस कुटिल-हृदय (भाई) की रक्षा हो रही है— उग्रो दनुजस्तीक्ष्णो मत्पदाक्रान्तिसूद्यतः । अनेन क्रष्टुमिच्छामि कण्टकेनेव कण्टकम् ।। ६६ ।। ६६. 'मेरा अनुज उग्र, तीक्ष्ण तथा मुझे पददलित करने के लिये प्रयत्नशील है, अतएव काँटे से काँटा निकालना चाहता हूँ । कार्यापेक्षावशादेतं रक्षामि न तु गौरवात् । श्रुत्वेति द्वित्रान् महतो व्यधाज्ज्ञातचिकीर्षितान् ।। ६७ ।। ६७. 'कार्य की अपेक्षावश इसकी रक्षा कर रहा हूँ न कि गौरववश ।' यह सुनकर, उस (पूर्ण) ने दो-तीन बड़े लोगों को राजा की इच्छा ज्ञात करायी । आदम खाँ का कश्मीर अभियान : [ २ : ६५-६९ अत्रान्तरेऽग्रजो राज्ञो मद्रदेशाद् बलान्वितः । भ्रातृ राज्य जिहीर्षायै पर्णात्सं प्राप दर्पितः ।। ६८ ।। ६८. इसी बीच सेना सहित, गर्वीला राजा का ( बड़ा ) भाई', मद्र देश से भाई का राज्य हरण करने की इच्छा से पर्णोत्स' पहुँचा । तच्छ्र ुत्वा नृपतिः क्रुद्धस्तान् समानीय पैतृकान् । अवोचत् किं नु कर्तव्यं ते तमित्यूचुरुत्तरम् ॥ ६९ ॥ ६९. यह सुनकर, क्रुद्ध राजा ने उन पैतृकों' को बुलाया और उनसे कहा- 'क्या करना चाहिये ?' उन लोगों ने उसको यह उत्तर दिया । में 'तूली' लिखा है । रोजर्स ने उसे लूलू ( जे० ए० एस० बी० : ५४ : १०७ ) हिस्ट्री आफ इण्डिया ( २८४ ) मे लूली लिखा है । पाद-टिप्पणी : लिखा है केम्ब्रिज नाम ६६. (१) कण्टकनेव कण्टकम् : काँटा से काँटा निकालना । कण्टक शोधनम् चाणक्य का प्रसिद्ध वाक्य । उसका अर्थ है राज्य के कण्टकों को दण्डादि द्वारा दूर करना । 'पादलग्नं करस्थेन कण्टकेनैव कण्टकम् ।' चाणक्य शतक : २२ । पाद-टिप्पणी : ६८. (१) भाई : आदम खाँन । तवकाते अकबरी मे उल्लेख है— इसके पूर्व आदम खाँ अत्यधिक सेना एकत्र करके सुल्तान से युद्ध करने के लिये जम्मू की विलायत में पहुँचा (६७४) । (२) पर्णोत्स: पूंछ । द्र० १ : ३ : ११०; १ : ७ : ८०, २०८; २ : २०२४ : १४४ ६०७ । पाद-टिप्पणी : ६९. ( १ ) पैतृक : पिता के सम्बन्धियों, पिता के प्रिय पात्रों, कुल-वंशजों आदि से अर्थ अभिप्रेत है ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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