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________________ २:१२-१४] श्रीवरकृता २५७ तस्माद् विहितसेवास्तुदेशाधीशत्वराजिताः । प्रसादमतुलं प्रापू रावत्रलवकादयः ॥ १२ ॥ १२. सेवा द्वारा देशाधीशत्व की प्राप्ति से सुशोभित रावत्र', लवकादि ( लौलकादि) उससे अतुल प्रसाद प्राप्त किये। अन्येऽप्युच्चावचान् ग्रामान् सेवका नवभूपतेः । पूर्वसेवानुसारेण प्रसादं प्रतिपेदिरे ॥ १३ ॥ ... १३. अन्य भी सेवक नवीन राजा से पूर्व सेवा के अनुसार, उससे ऊँचे-नीचे गाँवों के प्रसाद रूप में प्राप्त किये। राजा राजपुरीसिन्धुपत्यादीन् दर्शनागतान् । प्रत्यमुञ्चदलंकृत्य पार्थिवोचितया श्रिया ॥ १४ ॥ १४. राजा ने दर्शनागत राजपुरी', सिन्धुपति आदि राजाओं को राजोचित श्री से अलंकृत कर मुक्त किया। व्याघातं' नही है। श्लोक केवल दो पदों का वहाँ जीवन पर्यन्त के लिए गुजरज की जागीर दिया है । बम्बई मे तीन पद है। (४७५ )। क्रमराज को गुजरज लिखा गया है (१) क्रमराज्य : कामराज। द्रष्टव्य टिप्पणी क्योंकि पुरानी फारसी मे काफ और गाफ एक १:१:४०; २ : १९१; ३ : २१, ६५, ८६। तरह से लिखे जाते थे। अनुवादकों ने नाम का (म्युनिख : पाण्डु० : ७७ बी०)। अनुवाद करने में इसीलिए गलती किये है। यदि (२) इक्षिका : नाग्राम किंवा नागाम परगना गाफ को काफ पढ़ा जाय तो कजराज होता है। यह में पछगोम है। श्रीनगर अंचल तक विस्तृत है। कमराज का अपभ्रंश है । द्र० : १ : २ : ५, १ : ३ : इसके मध्य मे दामोदर उद्र अथवा दामदर उद्र स्थित ११७; २ : १७९; ३ : २, ६, ४ : २१ । है इस समय येच परगना में है। स्तीन का मत है कि पाद-टिप्पणी: यह येच परगना में है (स्तीन रा०२ : ४७५ )। १२. (१) रावत्र : द्रष्टव्य टिप्पणी : १: द्र० : ३ : २५ । (३) युवराज : वलीअहद । द्रष्टव्य टिप्पणी । १ : २ : ५ ( म्युनिख : पाण्डु० : ७७ बी०)। पाद-टिप्पणी : तवक्काते अकबरी मे उल्लेख है-'किमराज १४. (१) राजपुरी : राजौरी । द्र० : १:१: ( कामराज ) की विलायत हसन खाँ को जागीर मे ९१, १०७; १ : ३ : ४०; १:७ : ८० । दे दी गयी और उसे अपना अमीरुल उमरा तथा (२) सिन्धुपति : फिरिश्ता के अनुसार यह वलीअहद ( युवराज ) नियुक्त कर दिया (४४६- नाम निजामुद्दीन होना चाहिए। वह २८ दिसम्बर ६७३ )। पीर हसन भी यही लिखता है (१८७)। सन् १४६१ ई० को राजगद्दी पर बैठा और ३२ वर्ष फिरिश्ता ने उल्लेख किया है-सुल्तान ने पहला शासन किया ( ४२९ )।। काम यह किया कि अपने पुत्र को अमीरुल उमरा तवक्काते अकबरी मे उल्लेख है कि ४८ वर्ष का खिताब दिया। उसे अपना वलीअहद' तथा शासन किया था। जै. रा. ३३
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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