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________________ २४८ जैन राजतरंगिणी पण्डिताः कवयस्तस्य वाचाला तएव तं विना दृष्टाः पौषे मूका: येऽभवन् सदा । २६७. उसके जो पण्डित एवं कवि सदा बाचाल मास में पिक' सदृश मूक देखे गये । [ १ : ७ : २६७-२७० पिका इव ।। २६७ ।। रहते थे, वे ही उस राजा के बिना पोष सदा । याभूत् सरस्वतीनेत्रनिभा विकसिता ग्रन्थया संकुचिता साभूद् बुधपुस्तकसंततिः ।। २६८ ।। २६८. सरस्वती के नेत्र सदृश जो सदा विकसित रहती थी, वह बुध ( विद्वान ) पुस्तकों की परम्परा संकुचित हो गयी । तर्कव्याकरणादीनां शस्त्राणां ये श्रमं व्यधुः । ते राजरञ्जनायालं देशभाषाश्रमं व्यधुः ।। २६९ ।। २६९. जिन लोगों ने तर्क, व्याकरण आदि शास्त्रों में श्रम किया था, वे लोग राजा की प्रसन्नता के लिये देश भाषा में प्रचुर श्रम किये । राज्ञा ये बहुमानिता गृहसुखश्रीमण्डिताः पण्डिताः शास्त्राभ्यासमहर्निशं प्रविदधुर्ग्रन्थार्जनाद्युत्सुकाः । पाद-टिप्पणी : २६७. (१) पिक : कोयल, कोकिल । मीमांसा भाष्यकार सबरस्वामी ने पिक शब्द को म्लेच्छ भाषा से गृहीत बताया है। पिक वान्धव की संज्ञा वसंत ऋतु तथा पिकबन्धु आम का वृक्ष माना गया है । आम में मंजरी वसन्त ऋतु में लगती है । शीतकाल में पिक की बोली नहीं सुनाई पड़ती परन्तु कुसुमाकर के आगमन के साथ वह कुसुमों में पृष्टाः किं पठितेति ते प्रतिजगुः श्रीजैनभूपे गते कुत्र व्याकरणं व तर्ककलहः कुत्रापि काव्यश्रमः ॥। २७० ।। २७०. राजा द्वारा बहुत सम्मानित गृहसुखश्री से मण्डित, जो पण्डित अहर्निश शास्त्राभ्यास करते थे और ग्रन्थार्जन आदि के प्रति उत्सुक रहते थे, पूछे जाने पर वे कह जाते थे— 'श्री जैनुल आबदीन के चले जाने पर, कहाँ व्याकरण, कहाँ तर्क-विवाद और कहाँ साहित्य में श्रम ?' बँठी कूजने लगती हैं— कुसुम शरासन शासन वदिनि पिक निकरे भजभावम् — गीतगोविन्द : ९१ । पाद-टिप्पणी : २६८. (१) बुध: शब्द श्लिष्ट है । अर्थ बुद्ध तथा विद्वान है । दूसरा अर्थ भगवान बुद्ध हैं । यह अर्थ लगाने पर बौद्धों की पुस्तकों की परम्परा लुप्त हो गयी, यह अर्थ हो जायगा । श्रीदत्त ने बुद्ध अर्थ विद्वान लगाया है ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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