SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १:७: २५८-२६०] श्रीवरकृता शवागारोपरि शिलां स्फाटिकी रचनोज्ज्वलाम् । दी( सर्वोन्नतां राज्ञो मृति परिणतामिव ।। २५८ ।। २५८. शवागार के ऊपर रचना से सुन्दर, दीर्घ एव स्फटिक शिला' राजा की परिणत मूर्ति सदृश लग रही थी। घनोत्कण्ठदिदृक्षाप्तरुदल्लोकाश्रुबिन्दुभिः । यत्र मुक्ताफलैः पूजा लसतीवोपरि प्रभोः ।। २५९ ॥ २५९. अत्यधिक उत्कण्ठावश देखने की इच्छा के कारण रोते हुये, लोगों के अश्रुबिन्दुरूप मुक्ताफलों से, जहाँ पर प्रभु के ऊपर, मानों पूजा शोभित हो रही थी। पाद-टिप्पणो . किसी प्रकार का धन नहीं है। अतएव उसे शान्ति २५८.(१) शिला : कब्र के ऊपर मूर्धा की से पडे रहने दिया जाय । तरफ लौहे मजार ( एक पत्थर ) जिस पर मृतक का मुसलमानों मे कच्ची कब्र की मान्यता है । नामादि लिखा रहता है, उसे खतवा कहते है। अमीर, नबाब, बादशाह अपना अधिक धन मजार उसे गाड़ देते है। उस पर दीपक रखने के लिए। बनाने में खर्च करते है । मुसलिम विधान के अनुसार ताखा बना रहता है। शिला रखना आवश्यक नहीं है। वन की पहचान भूमि मे गाड़ना सेमेटिक ( शामी) प्रथा है। के लिये एक पत्थर लगा दिया जाता है। ताकि यहूदियों तथा उनकी पुरातन बाइविल के अनुसार कुटुम्बीगण कब्र को पहचान कर फातिहा पढे और गाड़ना धार्मिक संस्कार है । कब्र से, व्यक्ति कयामत मृतात्मा के लिये दुआ मांगें। शिला लगाना पुण्य अर्थात प्रलय अथवा भगवान द्वारा पाप-पुण्य कार्य नही है। उसका लगाना आवश्यक नहीं है । निर्णय के दिन उठेगा। पत्थरों या लकडियों पर कही-कही लकड़ी भी मुसलिम देशों में पहचान के किसी प्रकार की आकृति बनाना या उन्हे किसी लिये लगा दी जाती है। जहाँ पत्थर का अभाव पुण्यकार्य के प्रतीक स्वरूप गढ़ना परम्परा, संस्कार होता रम्परा, संस्कार होता है। एवं सम्प्रदाय के विरुद्ध है। मैने अपनी इसराइल यात्रा मे देखा कि यहूदियों के कब्र पर एक अनगढा __ सुल्तान जैनुल आबदीन के कब्र मजारे सला तीन में कोई अभिलेख इस समय नहीं है। यदि वह खण्डित शिलाखण्ड गाड़ देते है। उससे कब्र की शिलाखण्ड मिल जाता, तो जैनुल आबदीन के मृत्यु पहचान हो जाती है। तथापि जरूसलम मे मैं महा के समय के विषय में विवाद मिट जाता। त्मन डेविड ( दाऊद ) तथा सुलेमान की पक्की बनी हुई कब्र देखा है । यहूदी लोग पत्थर या प्लास्तर राजतरगिणी संग्रह में राज्यकाल ५० वर्ष दिया के ताबूत में रखकर शव गाड़ने लगे थे। इस प्रकार गया है। डाक्टर सूफी मृत्युकाल सन् १४७० ई०, के ताबूत या बक्स इसराइल के अनेक संग्रहालयों मे वेंकटाचालम् सन् १४७४ ई०, दिल्ली सल्तनत तथा रखे मिलेंगे। उनमे रत्न, द्रव्य आदि रखते थे। कब कैम्प्रि० हिस्ट्री मे सन् १४७० ई० दिया गया है। खोदकर धन निकालने वालों की एक गोल बन गयी (द्र० राजतरंगिणी संग्रह श्लोक ९९ पृष्ठ २४७ थी। अनेक ताबूतों पर लोग लिख देते थे कि उसमे लेखक भाष्य ।)
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy