SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ जैनराजतरंगिणी यस्त्वं कोमलशय्यासु नागा निद्रां गणावृतः । स कथं भ्रूगणस्यान्तस्तिष्ठस्येकः सशर्करे ।। २४२ ॥ २४२. 'जो तुम गणावृत' होकर, कोमल शय्या पर निद्रा नही प्राप्त करते थे, वही तुम अकेले भूमि के कंकरीले मध्य भाग में कैसे स्थित हो ? [ १ : ७ : २४२-२४७ प्रतिमुच्य भवन्तं मे प्राप्तस्य स्वगृहं न कः । अशप मास्तु मेलापो भूयो वामिति कोपितः ।। २४३ ॥ २४३. ‘आपको छोड़कर, अपने घर पहुँचने पर, मुझको क्रुद्ध होकर किसने यह शाप दिया कि इन दोनों का पुनर्मिलन न हो ? औन्निद्रय कारितोऽस्माभिः कुपुत्रैः सततं भवान् । arrari प्राप्य दीर्घनिद्रां करोषि किम् ।। २४४ ॥ २४४. 'हम कुपुत्रों ने निरन्तर आपको उनिद्र कर दिया था। क्या आज ही अवसर पाकर निद्रा ले रहे हो ? ज्वलिताभूत् तनुर्नित्यं सततोदितया यया । साद्य किं चलिता राजंश्चिन्ता ते मानसान्तराम् || २४५ ।। २४५. 'निरन्तर उत्पन्न जिसने नित्य शरीर को जलाया, हे ! राजन् ! क्या वह चिन्ता तुम्हारे मन से चली गयी ? चित्रे वाप्यथ संकल्पे पश्यामि वदनाम्बुजम् । शृणोमि ताः कथाः कुत्र तात ते बहुपातकी ।। २४६ ।। २४६. 'हे तात् ! चित्र मे अथवा सकल्प में तुम्हारे पदाम्बुज को देखता हूँ, परन्तु बहुपातकी मैं, तुम्हारी उन कथाओं को कहाँ सुनता हूँ ? राज्यं विपद् दिनं रात्रिः जीवनं मरणं नाथ त्वां सूद्यानं पितृकाननम् । विना मम सांप्रतम् ॥ २४७ ॥ २४७. 'हे नाथ! तुम्हारे बिना इस समय मेरे लिये राज्य विपत्ति, दिन-रात्रि, सुन्दर उद्यान पितृ कानन ( कब्रिस्तान ) तथा जीवन मरण हो गया है । पाद-टिप्पणी. २४७ (१) पितृ कान : श्रीवर ने कब्रिस्तान को श्लोक मे शवाजिर लिखा है । यहाँ वह पाद-टिप्पणी : २४२. ( १ ) गणावृत्त गणों, पारषदों या लोगों से घिरे रहने से तात्पर्य है । ( २ ) कंकरीला : कंकरीली मिट्टी से तात्पर्य कब्रिस्तान की संज्ञा पितरों के है । क्योंकि अनेक पितरों की कब्र कानन से दिया है। कब्रिस्तान में थी ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy