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________________ श्रीवरकृता निराश: सपरिच्छदः । तद्वार्ताकर्णनाद्भीतो आदमखानो वित्राणो विपुलाटाध्वना विषुलाटाध्वना ययौ ॥ २०६ ॥ २०६. उस वार्ता को सुनने से भीत एवं निराश अनुचर सहित वित्राण ( रक्षा रहित ) आदम खान विषुलाटा' मार्ग से चला गया। १७ २०६ - २०७] तारबलमार्गेण गच्छन्निजजनावृतः । अन्वागतानुजभ्रातृवीरलोकक्षयं स . व्यधात् ।। २०७ ॥ २०७. अपने जनों से आवृत होकर, तारबल' मार्ग से जाते हुये उसने पीछे से आये अनुज, के मित्र एव वीरों का विनाश कर दिया । पाद-टिप्पणी: २०६. (१) विषुलाटा विधाला विच = लारी = वनिहाल दर्रे के पादमूल मे विषलटा का क्षेत्र है। यह खशों का स्थान माना गया है । द्रष्टव्य रा० : ८ : ६८४, ६९७, १०७४, ११११, १६६२ तथा १७२० ) । श्रीस्तीन ने इसे विचलारी नदी की उपत्यका माना है ( रा० : १ : ३१७; ८ : १७७ ) । यह उपत्यका परगना दिवसर के दक्षिण है । बनिहाल जिला का पानी विचलारी नदी बहाकर ले जाती है। वह मोहू तथा बनिहाल स्रोतस्विनयों से मिलकर विचारी नदी बनती है। पहले वह पूर्व-दक्षिण दिशा में बहती है - तत्पश्चात् उसमे पोगल तथा परिस्तान स्रोतस्विनियों इसके वाम तट पर मिलती है। वह पश्चिम की ओर बहने लगती हैं। एक संकीर्ण उपत्यका में बहती रामवन के ६ मील पश्चिम चनाव नदी मे मिल जाती है । = २३१ भागने के लिए मजबूर हो गया। वह बूदरल का मार्ग पकड़ कर हिन्दुस्तान की ओर चला गया ( ४७४ ) ।' तबकाते अकबरी के एक पाण्डुलिपि मे 'मावळ' तथा 'मावेल' दूसरी पाण्डुलिपि तथा लीथो संस्करण मे 'नलवल' लिखा है। फिरिश्ता बारहमूला से जाना लिखता है हिदायत हुसेन ने 'भावेस' लिखा है। पाद-टिप्पणी : २०७ (१) तारबल यह एक दर्रा, संकट या पास है । पर्वतीय क्षेत्र मे है । तारवल से मार्ग विषालटा की ओर जाता था । तवक्काते अकबरी मे नाम मावेल दिया गया है ( ४४५ = ६७१ ) । तयस्काते अकबरी मे उल्लेख है- 'आयम स ने जब यह समाचार सुने तो वह भय के कारण मावेल के मार्ग से हिन्दुस्तान की ओर चल दिया उसके बहुत से सेवक उससे पृथक हो गये (४४५६७१) । पीर हसन ने लिखा है कि 'बारहमुला के रास्ते हिन्दुस्तान का इरादा किया। उसके नौकर उससे वददिल होकर उससे जुदा हो गये। हाजी खाँ के सिपहसालार जेन हारिक ने सिपाहियों की एक जमाअत के साथ तेजी के साथ उसका तअक्कुब ( पीछा ) किया। मगर आदम खां के हाथों से बमय अजीजों और भाइयों के मारा गया ( पीर हसन १८६) ।' फिरिश्ता ने वद्रल नाम तारवल का दिया है । तवक्काते अकबरी, फिरिश्ता तथा श्रीवर तीनों फिरिश्ता लिखता है - ' बाध्य होकर आदम खाँ एक ही स्थान का भिन्न-भिन्न नाम दिये है ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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