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________________ २२७ १ : ७ : १९१-१९२] श्रीवरकृता श्रुत्वा बह्रामखानोऽथ चकितोऽन्तिकमागतः । गत्वरं लक्षणैर्ज्ञात्वा भूपं भ्रानेऽब्रवीदिति ॥ १९१ ।। १९१. यह सुनकर, चकित बहराम खान ( राजा के पास ) आया और लक्षणों से राजा को मरणासन्न जानकर, भाई से इस प्रकार कहा जीवत्यस्मत्पिता नैव मिथ्येवोत्थाप्यते विटैः। द्वाराग्रात् पतितो भूमौ मूकप्रायो विचेतनः ।। १९२ ।। १९ . 'द्वार के अग्रभाग से भूमि पर गिरे, मूकप्राय एवं चेतना रहित' हमारे पिता नहीं जीवित है। विट लोग मिथ्या है तवक्काते अकबरी में उल्लेख है-'जब सुल्तान लम्पट एव वेश्यागामी तथा धूर्त होता है । 'कुट्टनीपूर्णत. शक्तिहीन हो गया, तब भी अमीर लोग मतम्' तथा साहित्यदर्पण में उसके लक्षण दिये गये फितना के भय से सुल्तान के पुत्रों को उसे देखने के है। वेश्योपचार में प्रवीण, कुशल, मधुरभाषी, लिए न आने देते थे। कभी-कभी वे सुल्तान को कविता मे दक्ष, ऊहापोह मे चतुर तथा वाग्मी होता उच्च स्थान पर बड़े कष्ट की अवस्था मे बैठाते थे है। शब्दाडम्बर में लोगों को मोहित कर देता है और नक्कारे बजवाते थे कि सुल्तान स्वस्थ हो गया (साहित्यदर्पण : २४ : १०४ )। (४४५ = ६७०)। क्षेमेन्द्र ने देशोपदेश के उपदेश संख्या पाँच मे तवक्काते अकबरी के एक पाण्डुलिपि मे 'फितना' विट का वर्णन किया है। विट परदारानुरागी होता नही है परन्तु दूसरी मे है । 'फितना' का अर्थ यहाँ है। वह वेश्याओं, कुलटाओं तथा कुट्टनियों के अशान्ति किया है। द्र० : २ : ९२, १२८ । निवास स्थान की यात्रा करता रहता है। वह पाद-टिप्पणी: अपनी मोछे मुरेरता रहता है। वह अपने घुधुराले १९१ "भूपं' पाठ-बम्बई। बालो को मस्तक पर सजाता है। वह भडकीला पाद-टिप्पणी: तथा फैशनोबल परिधान पहनता है। उसका मुख १९२. (१) चेतना रहित : तवक्काते अक ताम्बूल के रोमन्थन से चलता रहता है। वह मुख बरी में उल्लेख है-'अन्त में सुल्तान का रोग जब मे पान भरे स्फुट शब्दों का उच्चारण करता है। बहुत बढ़ गया, एक दिन और एक रात्रि वह अचेत बोलते समय उसकी दन्त-पंक्तियाँ दिखाई पड जाती रहा ( ४४५ = ६७१)।' है । वह वेश्याश्रय मे, खुफियाखानों मे अपनी वेप-भूषा फिरिश्ता का वर्णन कुछ भिन्न है । उसके अनु के कारण लक्षित हो जाता है। अपने माता को सार आदम खाँ ने अपने सिपाहियों को नगर के फटे-पुराने कपड़ों मे रखता है। पूछने पर कहता बाहर रख दिया ताकि हाजी खाँ तथा अन्य शत्रुओं है कि वह पनिहारिन है। किसी खस के घर मे की सेना पर दृष्टि रखी जाय तथा स्वयं रात्रि कुछ ही समय रहने पर ही एक कौआ की तरह सुल्तान के दरबार में व्यतीत किया। हसन खाँ वोलता चला जाता है। उसकी बोल-चाल अजीब कछी ने भी अमीरों से हाजी खाँ के प्रति वफादारी ढंग की होती है। की प्रतिज्ञा ले लिया था । क्षेमेन्द्र ने २८ श्लोकों मे विट का सजीव-चित्रण (२) विट : विट का शाब्दिक अर्थ, कामुक, किया है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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