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________________ २२४ जैनराजतरंगिणी [१:७:१७४-१७८ इत्थं पौरजनः सर्वश्चक्रोशातितरां तदा । यवनव्रतमासाप्तौ त्यक्तमांसाशनो नृपः ॥ १७४ ॥ १७४. इस प्रकार उस समय सब पुरवासी रोने लगे। यवनो (मुसलमानों) के व्रत (रमजान) का महीना आने पर नृप ने मांस' अशन त्याग दिया। संदध्यौ च कुपुत्रोऽयं यैरानीतो दिगन्तरात् । तैः स्वात्मरक्षिभिः सर्व राज्यं मे बत नाशितम् ॥ १७५ ॥ १७५. और विचार किया'–लोग दिगन्तर से कुपुत्र को लाये हैं, केवल अपनी रक्षा करनेवाले वे लोग दुःख है कि मेरा सम्पूर्ण राज्य नष्ट कर दिया। एकतः सबलौ पुत्रौ नगरे मिलितौ मिथः । एकतः पुत्र एकाकी तनिष्ठा मन्त्रिणः शठाः ॥ १७६ ॥ १७६. एक तरफ, नगर में सवल दोनों पुत्र परस्पर मिल गये है, और एक तरफ, एकाकी पुत्र एवं उसके आश्रित मन्त्री शठ हैं। पुत्रा युद्धं करिष्यन्ति कष्टमापतितं महत् । किं तु दूये पुरी सेयं पाल्या कुलवधूरिव ॥ १७७ ॥ १७७. 'पुत्र युद्ध करेंगे । महान कष्ट आ पड़ा है । किन्तु दुःखी हूं कि यह पुरी कुलवधू तुल्य पालित है मयि जीवति नश्येच्चेत् किं कार्य जीवितेन मे । भक्ताः शक्तागता भृत्याः किं पृच्छामि करोमि किम् ॥ १७८॥ १७८. 'यदि मेरे जीवित रहते, ( यह ) नष्ट हो जाय. तो मेरे इस जीवन से क्या लाभ ? भक्त एवं शक्त ( समर्थ) भृत्य चले गये, क्या पूछ और क्या करूं?' पाद-टिप्पणी : आइने अकबरी मे उल्लेख है कि सुल्तान मांस १७४. उक्त श्लोक श्रीकण्ठ कौल संस्करण के नही खाता था ( पृष्ठ : ४३९ )। १७२वें तृतीय पद तथा १७३वें का प्रथम पद है। तवक्काते अकबरी में उल्लेख मिलता है-'रमश्लोक संख्या १७५ उक्त संस्करण के अन्तिम दो जान के मास मे सुल्तान मांस नही खाता था (पृष्ठ ' पदों का योग है। ४३९-६५७ )। (१) मांसत्याग : जैनुल आबदीन की प्रवृत्ति कैम्ब्रिज हिस्ट्री में वर्णन किया गया है-उसन उसके जीवन के अन्तिम चरण में सात्विक हो गयी शिकार खेलना वजित कर दिया था। रमजान के थी। पुत्रों के कारण, उसे जगत से वितृष्णा एवं वैराग्य मास मे मांस बिल्कुल नही खाता था (३ : २८२) । हो गया था। नैराश्य ने उसे घेर लिया था। निराशा पाद-टिप्पणी : में केवल भगवान की ही एक आशा आस्तिकों को १७५. (१) दिगन्तर : द्रष्टव्य टिप्पणी : १ : रहती है अतएव सुल्तान धर्म की ओर अधिकाधिक १: ३९; १: ३ : ११३; १ : ३ : ७६; १:७ . झुकता गया और प्राणि-हिंसा से विरत हो गया । १७७ ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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