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________________ २१४ पूर्णो तृप्तो जैन राजतरंगिणी विलासान् रिक्तः मृगेन्द्रो १२५. 'मेरे संग्रह के गर्हणा ( निन्दा नहीं करेंगे । रमते र्भुङ्क्ते क्षुधातों वनजन्तुवर्गम् || १२४ ॥ १२४. 'राजा पूर्ण होने पर, विलास करता है, रिक्त होने पर, प्रजा पीड़न करता है, तृप्त सिंह गुहा में रमता है, और क्षुधार्थ (सिंह) बन के जन्तु वर्ग को खाता है । कुरुते प्रजेशो प्रजापीडनमातनोति । गुहान्त मत्संचयोपकारेण भाविभिः पीडनोज्झितैः । आयतिज्ञ वदद्भिर्मां करिष्यन्ते न गर्हणाः ॥ १२५ ॥ [ १ : ७ : १२४-१२८ उपकार से, भावी पीड़ा रहित जन, उत्तरकाल के ज्ञाता, मेरी पूर्णाद्राजगृहादन्ये पूर्णाः स्युरुपकारकाः । नयन्त्यब्धेर्न चेत्तोयं भूमौ वर्षन्ति किं घनाः ॥ १२६ ।। १२६. 'पूर्ण राजगृह से अन्य उपकारी पूर्ण होएँ, यदि घन समुद्र से जल न ले जाते, तो भूमि पर क्या बरसते ? इयं या सामग्री भवति नृपतेः सर्वरुचिरा धनेनैकेनैव प्रभवति चिरं सा प्रभवता । फलं पत्रं पुष्पं समुदयति यद्यद्विटपिनो पाद-टिप्पणी : १२४. 'गुहान्तर' पाठ - बम्बई । पाद-टिप्पणी : १२७. 'समुदयति' पाठ - बम्बई । घरण्यन्तर्भूतो जनयति तदेको रसगुणः || १२७ ।। १२७. 'सर्वरुचिकर राजा को, जो सामग्री होती है, वह चिरकाल से उत्पन्न होनेवाले केवल धन के द्वारा होती है । वृक्ष से फल, पत्र, पुष्प, जो कुछ निकलता है, वह सब पृथ्वी के अन्दर रहनेवाला रसगुण ही करता है ।' सुदीर्घदर्शिनो वाक्यं श्रुत्वेति आसंस्तच्चोद्यकर्तारस्तदग्रे ते १२८. इस प्रकार, दीर्घदर्शी राजा का वाक्य सुनकर उसकी प्रेरणा से कार्य करनेवाले, वे सब मन्त्री, उसके समक्ष निरुत्तर हो गये । पृथिवीपतेः । निरुत्तराः ॥ १२८ ॥ पाद-टिप्पणी : १२८. 'सु' पाठ - बम्बई ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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