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________________ १९२ जैनराजतरंगिणी [१:७:२६-२९ अवृष्टया वसतिं त्यक्त्वा गते कापि मृते जने । शून्या केन पुरग्रामा दृष्टा राजन् पदे पदे ॥ २६ ॥ २६. 'अवृष्टि के कारण, मनुष्य बस्ती त्यागकर, कहीं चले जाने पर, अथवा मर जाने पर, हे राजन् ! पद-पद पर, कौन से पुर-ग्राम शून्य नहीं देखे गये। प्रीति स्नेहं च दाक्षिण्यं पत्न्यां पुत्रे पितर्यपि । कुक्षिभरिः क्षुदुत्तप्तो विस्मरत्यवनौ जनः ॥ २७ ॥ २७. 'पृथ्वी पर क्षुधातप्त कुक्षंभरि (पेटू) जन पत्नी के प्रति प्रेम, पुत्र के प्रति स्नेह, पिता के प्रति दाक्षिण्य भाव भूल गये। खुरासानावनीशक्रं विक्रान्त्या शत्रुभूमिगम् । अन्नाभावाद् भवन्मित्रमभिषेणेन निर्गतम् ॥ २८ ॥ २८. 'आपका मित्र एवं खुरासान' भूमि का इन्द्र, जो कि अन्नाभाव के कारण, अभियान हेतु वीरतापूर्वक शत्रुभूमि में चला गया था। मेर्जाऽभोसैदनामानं सुरत्राणं रणान्तरात् । इराकभूपतिर्बद्ध वावधीत् कोटिबलान्वितम् ।। २९ ॥ युग्मम् ॥ २९. 'कोटि शैन्य युक्त, उस मिर्जा अभोसैद' नामक सुलतान को, रण मध्य से बांधकर, इराक के सुलतान ने मार डाला (युग्मम्) । पाद-टिप्पणी। सीमाएँ बदलती रही है। काल के थपेड़ों ने इसमें पाठ-बम्बई। बहुत उलट-पलट किया है। वर्तमान ईराक के तुर्की, २८. (१) खुरासान : शक की काल गणना पश्चिमोत्तर में सीरिया, पश्चिम में सीरिया तथा ठीक है । सन् १४६९ ई० में खुरासान का सुल्तान सऊदी अरब का रेगिस्तान, दक्षिण मे फारस की मर गया। इसी समय हुसन वैकरा ने हेरात पर खाड़ी तथा पूरब मे ईरान है। इस समय यह देश अधिकार कर, अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। त्रिभुजाकार है। उत्तर-दक्षिण ११२५ किलोमीटर, (द्र० जैन० : १:४ ३२; १:६ : २२)। पूरब-पश्चिम ४८० किलोमीटर तथा क्षेत्रफल ४३८, पाद-टिप्पणी: ४४६ वर्ग किलोमीटर है। भारतवर्ष के मध्य २९ (१) अभोसैद : अबूसैद । तुर्कोमन हसन प्रदेश के बराबर है। देश की ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूरब की ओर है। दजला एवं फुरात मुख्य वेग ने अबूसैद की सेना परास्त कर, उसे जनवरी सन् नदियाँ है, जिनके उपत्यका मे अनेक सभ्यताएँ, १४६९ ई० में मार डाला। साम्राज्य एवं राज्य हुए और मिटे है। वर्ष मे आठ (२) ईराक : प्राचीन सभ्यता का ईराक प्रसिद्ध मास वर्षा नही होती। ग्रीष्म ऋतु में ईराक विश्व केन्द्र रहा है। उत्तरी भाग में असीरिया तथा के सर्वाधिक गरम स्थानों में हो जाता है। वायु दक्षिणी भाग मे वेबलोन की सभ्यता शताब्दियों तक शक एवं आकाश स्वच्छ रहता है। दिन में धूल फलती-फूलती रही है। इस देश की भौगोलिक उड़ती है । रात्रि में लोग बाहर सोते है। दोपहर
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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