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________________ १८२ जैनराजतरंगिणी [१:६ : २५-२६ कतेफसोफसग्लातख्यातवस्त्राधु पायनैः महम्मदसुरत्राणो गूजेरीशोऽप्यतूतुषत् ॥ २५ ॥ २५. कतेफ सोफ सग्लात' नामक वस्त्रादि उपायन प्रदान कर, गुर्जर के स्वामी मुहम्मद सुरत्राण ने भी उसे सन्तुष्ट किया। गिलानमेस्रमक्कादिदेशाधीशा हितेच्छया। दुर्लभोपायनैस्तैस्तैन के भूपमरञ्जयन् ॥ २६ ॥ २६ गिलान', मिस्र, मक्का', आदि देशों के किन राजाओं ने हित की इच्छा से, तत्तत् दुर्लभ उपायनों द्वारा राजा को प्रसन्न नही किया ? मिर्जा अबूसद तैमूर वंशीय (सन् १४५२- शुद्ध वाक्य है-'सूफी सकातो सायर नफास' । १४६७ ई०) बाबर का प्रपितामह था। कैम्ब्रिज (२) गुर्जर : गुजरात । आइने अकबरी भी हिस्ट्री के अनुसार वह सन् १४५८-१४६८ ई० तक इसका समर्थन करती है। गुर्जर का अर्थ यहाँ खुरासान का सुल्तान था। सुल्तान जैनुल आबदीन गुजरात है (द्र० क० ५ : २४४ )। ने सौगात के बदले में कीमती तोहफा काश्मीर से (३ ) मुहम्मद : मुहम्मद शाह चतुर्थ । पीर भेजा (पृ० १८१); और उल्लेख मिलता है कि सुल्तान हसन सुल्तान महमूद गुजराती नाम देता है (पृ० : जैनुल आबदीन ने केसर, कागज, मुश्क, शाल, १८१ )। आइने अकबरी मे उल्लेख मिलता हैशीशे के प्याले आदि भेजे । ( तारीख रशीदी : ७९; 'गुजरात के सुल्तान महमूद से सुल्तान जैनुल आबदीन म्युनिख० : पाण्डु० : ७३ ए० तथा तवक्काते अक० की मित्रता थी (पृ० ४३९ )।' तवक्काते अकबरी ४४० % ६५९; आइने अकबरी : २ : ३८९ )। में सुल्तान महमूद गुजराती नाम दिया गया है। (२) खच्चड़ . आइने अकबरी में भी उल्लेख इस समय मालवा का सुल्तान मुहम्मद प्रथम था। किया गया है-'सुल्तान अबू सईद मिरजा ने अरबी (४) सुरत्राण : सुल्तान जैनुल आबदीन । घोड़े और वोख्ती ऊँट भेजा था (पृ० ४३९)।' श्रीवर पाद-टिप्पणी : ने 'वेसर' शब्द का प्रयोग किया है। यह संस्कृत २६. (१) गिलान : अफगानिस्तान । कैम्ब्रिज शब्द है। इसका अर्थ खच्चड़ किया गया है। परन्तु हिस्टी के अनसार अजरबैजा तथा गिलान दोनों का आइने अकबरी में ऊँट का उल्लेख किया गया है।' शासक जहानशाह प्रतीत होता है ( ३ : २८२ )। तवक्काते अकबरी मे भी उल्लेख मिलता है गिलान एक नगर भी था। 'खुरासान के बादशाह सुल्तान अबू सईद ने खुरासान (२) मिस्र : श्रीवर ने शुद्ध नाम मिस्र दिया से अरबी घोड़े तथा वख्ती ऊँट उसके पास उपहार है, जो आज भी इजिप्ट का नाम है । बुर्जी ममलूक स्वरूप अपने देश की उत्तम वस्तुएँ भेजकर निष्ठा कैम्ब्रिज हिस्ट्री के अनुसार उस समय मिस्र का भाव प्रकट किया ( ४४०-६५९)।' सुल्तान था ( ३ : २८२ )। इसका केवल यहीं पाद-टिप्पणी: उल्लेख मिलता है। पाठ-बम्बई। (२) मक्का : पीर हसन लिखता है--सुल्तान २५. (१) कतेफ सोफ सग्लात : शुक ने भी ने अपने नाम की सराये कायम करके शरीफ मक्का इस वाक्य का प्रयोग किया है (१:२: ८४)। से मुहब्बत पैदा कर ली ( पृ० १८१ )। कैम्ब्रिज
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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