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________________ १७८ जैनराजतरंगिणी [१:६:१५ संगीतचूडामण्याख्यं श्रीसंगीतशिरोमणिम् ।। राज्ञ गीतविनोदार्थ गीतग्रन्थं व्यसर्जयत् ॥ १५ ॥ युग्मम् ॥ १५. संगीतशिरोमणि', संगीतचूड़ामणि' नामक गीत ग्रन्थ, गीत विनोद हेतु राजा के लिये भेजा । (युग्मम्) (२) डूगरसिह : तवक्काते अकबरी मे नाम सुल्तान ने उसका राज्य भी वापस कर दिया। डूंगरसेन दिया गया है। उसमें उल्लेख है-ग्वालि- राजा ने पण्डितों की सभा बुलाई। संगीतशिरोमणि यर के राजा डूंगरसेन को जब यह ज्ञात हआ कि ग्रन्थ की रचना की गयी। उसका रचनाकार कोई सुल्तान को संगीत से अत्यधिक रुचि है तो उसने एक व्यक्ति नही परन्तु 'पण्डित मण्डली' के नाम से इस विषय के दो-तीन उत्तम ग्रन्थ उसकी सेवा में पुस्तक प्रकाशित की गयी। यह पुस्तक पूर्ण रूप में भेजे ( ४४०-६६०)। उक्त प्रमाणों से स्पष्ट हो नही मिलती। इसकी कुछ पाण्डुलिपि वाराणसेय जाता है कि गोपालपुर वास्तव मे ग्वालियर था। संस्कृत विश्वविद्यालय और कुछ काशी विश्वश्रीवर वणित डूंगरसिह परशियन इतिहासकारों द्वारा विद्यालय मे है। यदि पूरा ग्रन्थ मिल जाय तो वर्णित डूंगरसेन है। तवक्काते अकबरी में ही ग्वा- संगीत इतिहास पर और प्रकाश पड़ेगा। लियर के राजा कीर्तिसिंह का उल्लेख कर, उसे डूंगर- सुल्तान गीतकारों तथा कुछ संगीतज्ञों का सिंह का पुत्र माना गया है। अतएव गोपालपुर ही संरक्षक था। उन्हे मुक्तहस्त दान देता था। उसके ग्वालियर का होना निर्विवाद है ( ३११)। समय काश्मीर ने संगीतविद्या मे समस्त भारत मे कैम्ब्रिज हिस्ट्री आफ इण्डिया में राजा का नाम प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी ( बहारिस्तान शाही : न देकर केवल-तोनवार राजा ग्वालियर लिखा पाण्डु० : ४९ ए०-बी०, हैदर मल्लिक : पाण्डु० : गया है ( ३ : २८८)। ११३ ए०)। तवक्काते अकबरी में उल्लेख है-'राजा ने पाद-टिप्पणी: दो-तीन ग्रन्थ भेजा था।' संगीतशिरोमणि राजा १५. (१) संगीतशिरोमणि : कडा हिन्दुओं का का विशेषण है। अन्य ग्रन्थों का नाम नही ज्ञात राज्य था। सन् १४४० ई. के आसपास उस पर है। यदि संगीतशिरोमणि राजा का विशेषण न जौनपुर के शरकी सुल्तान ने आक्रमण किया। राजा माना जाय, तो यह एक दूसरा ग्रन्थ था। तवक्काते हार गया। जौनपुर दरबार में उपस्थित किया अकबरी का उल्लेख इस प्रकार ठीक बैठ जाता है। गया। सुल्तान ने उससे उसकी इच्छा जाननी चाही। (२) संगीतचूड़ामणि : चालुक्य वंश के उसने कहा कि उसकी एकमात्र इच्छा यही है कि महाराज जगदेकमल्ल (सन् ११३४-११४३ ई०) संगीतज्ञ पण्डितों की एक गोष्ठी बुलाई जाय। संगीत के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनकी राजधानी उसमें तत्कालीन प्रचलित भेद मिटा कर, नवीन ग्रन्थ कल्याण थी। संगीतचूडामणि बृहद् ग्रन्थ के रचनाबनाया जाय। सुल्तान ने एक शर्त रखी। यदि कार थे । ग्रन्थ के कुछ अध्याय मिलते है। शेष मुसलमान धर्म स्वीकार कर ले तो उसे छोड देगा। अध्यायों का पता अथक अनुसन्धान के पश्चात् भी वह पण्डितों की सभा बुलाकर अपना काम आजादी अभी नहीं मिला है। यह ग्रन्थ गायकवाड़ ओरिके साथ कर सकता था। राजा ने संगीत ग्रन्थ की यण्टल सिरीज बड़ौदा से सन् १९५८ ई० मे प्रकाशित रचना के लिए इसलाम धर्म स्वीकार कर लिया। हुआ है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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