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________________ १७६ जैनराजतरंगिणी माण्डव्य गौड भूमीशः खलुच्यो यो महीपतिः । दरन्दामनामवस्त्रैरुपाहितैः ॥ १० ॥ अतूतुषद् १०, माण्डव्य', गौड' भूमि के राजा खलुच्यों ने दरन्दाम नामक वस्त्र को प्रदान कर ( उसे ) सन्तुष्ट किया । इतो स्मै नृपो भव्यं काव्यं कृत्वा स्वभाषया । प्राहिणोद् द्रव्यसंयुक्तं सव्यसाच्यग्रजोपमः ॥ ११ ॥ ११. युधिष्ठरोपम' राजा ने भी यहाँ से, उसके लिये द्रव्य सहित अपनी भाषा में सुन्दर काव्य लिखकर, प्रेषित किया । [१ : ६ : १०-१२ सोऽप्यनर्वैः पदार्थेर्न तथा तुष्टो महीपतिः । भूपकाव्यस्यातिमनोहरैः ॥ १२ ॥ सालङ्कारैर्यथा कि १२. वह राजा भी अलंकार सहित बहुमूल्य पदार्थों से उतना नहीं संतुष्ट हुआ, जितना नृपकाव्य के अति मनोहर अलंकारों से । दोनों आंखों के बीच होता नाक तक का भाग श्वेत होता है । घोडा में पाँच स्थानों पर घोड़ों के रंगों मुश्की आदि के बीच श्वेत रंग होने के कारण उन्हे पंचकल्याण कहा जाता है । मेरे पास भी पंचकल्याण घोड़ा, मोटर आने के पूर्व था । पंचकल्याण धोड़ा शुभ एवं मांगलिक तथा सुखप्रद माना जाता है। इस घोड़े की कोमत अन्य घोड़ों की अपेक्षा अधिक होती है | पाद-टिप्पणी : उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण की ५०४वी पंक्ति तथा बम्बई संस्करण का १०वीं श्लोक है । १०. ( १० ) माण्डव्य : माण्डू ( मालवा ) । वह मालवा का सुल्तान महमूद प्रथम था ( तवक्काते अकबरी: ४४० - ६५९ ) । ( २ ) गौड़ : द्रष्टव्य टिप्पणी : १ : १ : २५ । गौड़ का तात्पर्य बंगाल से है । ( ३ ) खलच्च : वहाँ इस समय सुल्तान ' रुक नुद्दीन' ( सन् १४५९ - १४७४ ई० ) था । श्रीवर ने सम्भवयः रुकनुद्दीन के लिये प्रयोग किया है । खलन्च का पाठभेद खलश्यो तथा खलुच्यो मिलता है । बंगाल में मुसलमानों का शासन था । खलच्च नाम मुसलिम नही हो सकता ( क० ४ : ३२३ ) । ४) दरन्दाम वस्त्र का क्या रूप था, प्रकाश नही पड़ता । अनुसन्धान अपेक्षित है । इसका केवल यही उल्लेख मिलता है । पाद-टिप्पणी : ११. ( १ ) युधिष्ठरोपम: धर्मराज पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर तुल्य । पाद-टिप्पणी : १२. कलकत्ता में 'महीपतेः' पाठ दिया गया है, जिससे अर्थ में पुनरुक्ति होती है । अत: 'महीपतिः' पाठ रखने से अर्थ की असंगति दूर हो जाती है ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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