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________________ १७४ जैनराजतरंगिणी दिगन्तरीया भूपालाः श्रुत्वैतद् गुणगौरवम् । नानोपायनवाँ धैर्ववर्षुर्नितराममुम् ५. दिगन्तरीय (बाहरके) भूपाल यह गुण-गौरव सुनकर, इस पर नाना प्रकार के उपायनों की नितरा वृष्टि किये। वेगेन जितवायुं स्वं ताजिकाख्यं तुरङ्गमम् । उपदां व्यसृजत सख्यादुच्चं पञ्चनदप्रभुः ॥ ६॥ ६ पंचनद' के राजा ने मित्रता के कारण वेग से वायु को जीतनेवाला उन्नत ताजिक नामक तुरंग उपहार में भेजा। पाद-टिप्पणी : व्यापार होता था। नामों के अन्त में 'क' जोड़ने ६. (१) पंचनद : पंजाब; झेलम, चनाव, की शैली काश्मीर मे है। अतएव ताजी के आगे रावी, सतलज, व्यास पाँच नदियों से सिंचित देश जो 'ताजीक' लगा दिया गया है। छन्द के लालित्य के पंज + आव (पाँच-पानी) कहा जाता है। भारत लिये दीर्घ मात्रायें प्रायः ह्रस्व तथा ह्रस्व की मात्रायें दीर्घ में परिणत कर दी जाती है। विभाजन के पूर्व का समस्त पंजाब इस परिभाषा में बम्बई संस्करण जोनराजतरंगिणी की श्लोक आ जाता है। पञ्चनद शब्द पुराकाल में प्रचलित था। पश्चिम दिग्विजय के समय नकूल ने पंचनद संख्या १७० मे ताजिक जाति का उल्लेख है, जो विजय किया था (सभा० : ३२:११)। पंचनद की दुलचा क साथ काश्मार में प्रवेश किये थे। पाँच नदियाँ विपाशा (व्यास), शतद् (सतलज), इरा प्रारम्भ मे ताजिक शब्द से अरब मुसलमानों वती (रावी), चन्द्रभागा (चनाव) और वितस्ता का बोध होता था। तुर्कों का जब मध्येशिया पर (झेलम) है। अधिकार हो गया, तो ईरानी वहाँ के निवासियों को भी ताजिक कहने लगे। कालान्तर में गैर तुर्क मुस(२) राजा : पंजाब कई सूबों में विभाजित लमानों के लिये ताजिक शब्द का व्यवहार होने था । वहाँ सूबेदारों का शासन था। लाहौर-दौलत लगा। ईरानी मुसलमान ताजिक कहे जाने लगे। खाँ लोदी (-१५२४) मुलतान-राय सकरा लंधा (सन् ताजिक शब्द तातार के व्यापारियो के लिये भी ता १४४५-१४६९ ई०), हुसेन खाँ लंधा (सन् १४६९ सम्बोधित किया जाता रहा है। आजकल ताजिक १५०२ ई०), दिपालपुर-तातार खाँ (सन् १४५१ शब्द पूर्व क्षेत्रीय इरानियों के लिये व्यवहृत होता १४८५ ई०), सुनाम या सामना-वहलोल लोदी है। अस्तराबाद एवं यज्द का मध्यवर्ती भूखण्ड (सन् १४४१-१४५२ ई०), सीरहिन्द-बहलोल लोदी ताजिकों के भमि की अन्तिम सीमा मानी जाती है। (सन् १४३१-१४६८ ई०) शासन कर रहे थे। किस सोवियत रूस मे ताजिक गणतन्त्र सन् १९२४ ई० में राजा से श्रीवर का तात्पर्य है, स्पष्ट नहीं होता। स्थापित हआ था। इसकी सीमा पर्व में सिकियाग (३) ताजिक: ताजी शब्द अरबी है तथा दक्षिण में अफगानिस्तान है। तुर्की घोड़े भी अरबी घोड़े को कहते है। अरबी घोड़ा सर्वश्रेष्ठ, अच्छे होते है। किन्तु अरबी घोड़े उनसे भी अच्छे वेगशाली माना जाता है। आस्ट्रेलिया की यात्रा में होते है। यहाँ पर ताजिक से ताजिकास्तान का घोड़ा मैंने देखा था कि अरबी घोड़े की नसल वहाँ पर ले अर्थ लगाना ठीक नही प्रतीत होता। द्र० जैन० : जाकर, अरबी घोड़े पैदा किये जाते थे। उनका ४:२४८ ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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