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________________ १६२ जैनराजतरंगिणी [१ : ५:८१-८३ श्रुत्वा शान्तरसोपेतां व्याख्यां स्वप्नेऽपि नो नृपः । अस्मार्षीदभिकाः कान्ताहावभावक्रियाइव ।। ८१ ॥ ८१. शान्तरस पूर्ण मेरी व्याख्या सुनकर, राजा स्वप्न में भी, उसी प्रकार उसका स्मरण किया, जिस प्रकार कामुक कान्ता की हाव-भाव और क्रियाओ का। यो यद्भाषाप्रवीणोऽस्ति स तद्भाषोपदेशभाक् । लोके नहि जना नानाभाषालिपिविदोऽखिलाः ।। ८२ ॥ ८२. जो जिस भाषा में प्रवीण है, वह उसी भाषा द्वारा उपदेश ग्रहण कर सकता है, लोक में सब लोग नाना भाषा एव लिपि नहीं जानते हैं। इति संस्कृतदेशादिपारसीवाग्विशारदः।। भाषाविपर्ययात् तत्तच्छास्त्रं सर्वमचीकरत् ॥ ८३ ।। ८३. अतएव संस्कृत भाषा आदि तथा फारसी भाषा में विशारद, जनों द्वारा भाषाविपर्यय (भाषान्तर) से, तत् तत् सब शास्त्रों को निर्मित कराया। यह योगियो एवं दार्शनिकों का सम्बल है । भारतीय स्वयं 'शिकायत' शीर्षक पुस्तक की फारसी में रचना धर्म, आचार, विचार, व्यवहार का सरल सुस्पष्ट किया था। अकबर के समय इसका पुनः फारसी में एवं तर्कशील काव्यमयी भाषा में प्रणयन किया अनुवाद किया गया था। दाराशिकोह ने भी इसका गया है। अनुवाद फारसी मे कराया था। फारसी मे इसके योगवासिष्ठ की एक और विशेषता है। कितने ही अनुवाद हुए थे। (द्रष्टव्य : लेखक की ___पुस्तक : योगवासिष्ठ कथा सन् १९६५ ई०)। 'गीता' भगवान द्वारा मानव अर्जुन की शंका समाधान है और 'योगवासिष्ठ' एक मानव द्वारा भग- पाद-टिप्पणी : वान राम की शंकाओं का समाधान है। गीता तथा ८३. (१) फारसी : संस्कृत पढ़कर जो ब्राह्मण योगवासिष्ठ में यह मौलिक भेद है। योगवासिष्ठ केवल पुरोहित अथवा धर्म कर्म करते और दूसरे जो आत्मा के ऊपर किसी शक्ति को प्राथमिकता नही फारसी पढकर राजकार्य में भाग लेते थे उन देता, गीता आत्मसमर्पण की बात करती है। राजसेवा वृत्ति करनेवाले ब्राह्मणों को कारकुन योगवासिष्ठ आत्मसमर्पण मे विश्वास नही करता। कहा जाता था। संस्कृतज्ञ एवं धर्म करनेवाले वह मानव को उसकी अंर्तशक्ति की ओर प्रेरित ब्राह्मणों को बच्ची भट्ट कहते है। कारकुन तथा करता है। उसे ही जगत शक्ति का स्रोत मानता वच्ची यह दोनों वर्ग अलग होते गये और एक समय है। जन्म-मृत्यु का रहस्य योगवासिष्ठ उदाहरणों परस्पर विवाह आदि भी बन्द हो गया था। अनेक कथाओं द्वारा समझाता है। (२) विपर्यय : अनुवाद । पीर हसन लिखता ___ब्रह्मज्ञान का, आत्मज्ञान का, योगवासिष्ठ अद्- है और बहुत से आलिम वरहमन और जोगी भुत ग्रन्थ है । उसने हिन्दुओं के साथ मुसलमानों को लोग कुरुक्षेत्र से बुलवाकर, उनकी मुसाहवत अनुप्राणित किया है। जैनुल आबदीन ने उसका से फायदा उठाता था। हिन्दुस्तान से संस्कृत और फारसी अनुवाद कराया था। उसी के आधार पर वेदों की किताबें मैंगवाकर उनका तरजुमा फारसी
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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