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________________ श्रीवरकृता गुणी मूर्खो निराचारः साचारो यवनो द्विजः । नापोषि यस्तदन्नेन कश्मीरेषु स नाभवत् ॥ २३ ॥ २३. काश्मीर में ऐसा कोई गुणी, मूर्ख, निराचार, साचार, यवन, द्विज' नहीं रहा, जिसका उसके अन्न से पोषण नहीं हुआ । १ : ५ : २३-२४ ] शंभुश्रीपतिधातृजह्नुमनुभिः पूर्वं खेरन्वये जातेनापि कृतः श्रमस्त्रिपथगा गङ्गैव जाता नदी । तेषां स्वार्थमभूद्रसो नरपतिः सोऽयं परार्थे पुन र्देशेऽस्मिन् स्वधिया नदीर्नवनवा नानापथः कृष्टवान् ।। २४ ।। पाद-टिप्पणी . २४. पूर्व में शिव' श्रीपति, ब्रह्मा, जन्हु, मनु" ने तथा सूर्यवंश में उत्पन्न ( भगीरथ' ) ने श्रम किया, तब गगा ( अवतरण ) हुआ, उन लोगों का उसमे स्वार्थ था किन्तु यह नरपति परोपकार हेतु ही अपनी बुद्धि से, इस देश मे नाना पथवाली, नयी-नयी नदियाँ, निर्मित करायी । २१. पाठ - बम्बई २३. ( १ ) द्विजादि : वहारिस्तानशाही मे भी सुलतान के इन पुण्य कार्यों का उल्लेख मिलता है ( पाण्डु० फोलियो ४८ बी० ) । पाद-टिप्पणी : १४३ २४. ( १ ) शिव – ब्रह्मा, विष्णु एव शिव त्रिदेव है । शिव ईशान है । विषपान करने के कारण इनका नाम नीलकण्ठ पड़ गया था। ग्यारहों रुद्र के पिता है । किरात वेष धारण कर अर्जुन से युद्ध तथा उन्हें वरदान दिया। गंगावतरण के समय शिव ने गंगा का वेग अपनी जटा में रोक लिया था । भगवान् शिव का आवास कैलाश माना गया है। त्रिपुर का वध करने के कारण इन्हे त्रिपुरारी कहा गया है । कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव के शरीर से वीरभद्र पैदा हुए थे। वृषभ इनका वाहन । वही ध्वज भी है । इन्हें त्रिनेत्र भी कहते है । तीसरा नेत्र खुलने पर पृथ्वी का संहार होता है । इनके अनेक पर्यायवाची नाम हैं। शिव योगी कहे जाते है । ताण्डव नृत्य के जनक है । नटराज हैं । (२) श्रीपति : भगवान विष्णु = लक्ष्मीपति = नारायण । (३) ब्रह्मा सृष्टि के सृजनकर्ता है । विष्णु सिंचनकर्ता एवं शिव संहारकर्ता है। प्रजाओं के स्रष्टा है। विष्णु के समान ब्रह्मा के भी अवतार - मानस, कायिक, चाक्षुष, वाचिक, श्रवणज, नासिकज, अण्डज एवं पद्मज है । पुराणो मे ब्रह्मा का चतुर्मुख रूप से वर्णन मिलता है । ब्रह्मा ने अपने शरीर के अर्धभाग से सतरूपा नामक स्त्री का निर्माण किया । वही इसकी पत्नी बनी। यह कथा बाइबिल के आदम एवं हौवा से मिलती है । प्रथमतः ब्रह्मा के पाँच मुखो का वर्णन हैं । किन्तु शकर के कारण यह पाँचवे मुख से रहित हो गया । ब्रह्मा एवं शंकर के विरोध की अनेक कथाये पुराणों में प्राप्त है । मत्स्य एवं महाभारत के अनुसार इसके शरीर से मृत्यु की उत्पत्ति हुई है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा के चार मुखो से चार बंदो की उत्पत्ति हुई है। पूर्व मुख से गायत्री छंद, ऋग्वेद, त्रिवृत, रथंतर एवं अग्निष्टोम । पश्चिम से सामवेद, सप्तदश ऋक्समूह, वैरूप साम एवं अतिराज यज्ञ । उत्तर से अथर्ववेद एकविंश ऋक्समूह, आप्तोर्याम, अनुष्टुप छंद एवं वैराज तथा दक्षिण से यजुर्वेद, पंचदश ऋक्समूह, बृहत्साम एवं उक्य यज्ञ उत्पन्न हुए थे । ब्रह्मा की मानस कन्याओं में सरस्वती उसे प्रिय है । पद्मपुराण में ब्रह्मा के १०८ स्थानों का निर्देश प्राप्त है । पद्मपुराण के अनुसार ब्रह्मा की
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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