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________________ १०६ जैनराजतरंगिणी [१:३: १०२-१०५ सा चेत तेषां स्वभेदो मा भूयाद् वैरात परस्परम् । मा जायेताथ वा दुष्टः सुतः कस्यापि दुःखदः ।। १०२ ॥ १०२. यदि राजा को बहुत सन्तान हो, तो परस्पर बैर से उनमें भेद न हो अथवा किसी को भी दुःखद दुष्ट पुत्र उत्पन्न न हो। प्रजान्तकारिणौ क्रूरौ राजपुत्रावुभावपि । सूर्यस्येव महीभत्तः पङ्गुकालाविवोदितौ ॥ १०३ ।। १०३ सूर्य के शनि' एवं यम के सदृश राजा के प्रजान्तकारी एवं क्रूर दो पुत्र हुये । अपकर्तन् विपन्मग्नान् दयमानः परानपि । क्षमी दाता गुणग्राही स्वामीदृग् लभ्यते कथम् ।। १०४ ।। १०४. अपकारी विपत्तिमग्न शत्रुओं पर भी दयालु, क्षमाशील, दाता, गुणग्राही ऐसा स्वामी कैसे (कहाँ) प्राप्त होता है ? व्यथितो यत् सुतैर्दुष्टः सोऽस्माद्भाग्यविपर्ययः । शृण्वन् स रुदिताक्रन्दमिति पौरगिरः पथि । पाददाहव्यथार्तोऽपि नगरान्निरगान्नृपः ।। १०५ ॥ १०५. दुष्ट पुत्रों से, जो वह व्यथित हुआ, यह हमलोगों का भाग्य विपर्यय' ही है-इस प्रकार मार्ग में रुदन एवं क्रन्दनपूर्वक पुरवासियों की वाणी सुनकर, पाददाह की व्यथा से पीड़ित भी नप नगर से निकल पड़ा। (२) सन्तान : मुसलिम राज्यवशों में बहु- पर मनुष्य बहुत परीशान और विपन्न तथा अस्थिर सन्तान सर्वदा अभिशाप रहा है। पारस्परिक संघर्षों हो जाता है। प्रबल ग्रह है। द्र० जैन० १:१: के कारण विश्व इतिहास अति रक्तरंजित है। १५; २ : २७।। पाद-टिप्पणी: (२) यम : वैदिक काल में मृत्यु के देवता माने गये है। यम एवं यमी भाई-बहन एवं सूर्य के १०२. बम्बई का १०१वां श्लोक तथा कलकत्ता पुत्र थे ( ऋ० : १ : १६५ : ४)। सबसे पहले की ३१४वी पंक्ति है। मरने वाले व्यक्ति यम थे (अथर्व० : १८:३: पाद-टिप्पणी: बम्बई का १०२वा श्लोक तथा फलकत्ता की पाव है कोनी पाद-टिप्पणी: ३१५वीं पंक्ति है। १०४. बम्बई का १०३वा श्लोक तथा कलकत्ता की २१६वीं पंक्ति है। १०३. ( १ ) शनि : सूर्य का पुत्र जिसने छाया पाद-टिप्पणी : के गर्भ से जन्म लिया था। इनका वर्ण काला तथा बम्बई का १०४वा श्लोक तथा कलकत्ता की वाहन गृद्ध है । अशुभ फलदायक ग्रह माना गया ३१७वीं पंक्ति है । है। फलित ज्योतिष के अनुसार शनि की दशा होने १०५. (१) भाग्य विपर्यय : जोनराज ने भी
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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