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________________ श्रीवरकृता चेत् प्राप्तो मयि जीवति बिह्वले । मदभ्यर्ण पुनरागमनेन किम् ।। ९० ।। ९०. यदि बिल मेरे जीवित रहते अति शीघ्र नही आयोगे, तो मेरे चले (मर) जानेपर, पुनः मेरे निकट आने से क्या लाभ होगा ?" १ : ३ : ९०-९१ ] अतितूर्णं न गते मयि तावत् सुयपुरं प्राप्तः सोऽभूत् तीर्णो नृपात्मजः । राजानीकैः समं युद्धमुद्धतं सचलो व्यधात् ।। ९१ ।। ९१. जैसे ही वह सबल राजपुत्र सुय्यपुर उद्धत युद्ध किया। . १०१ पहुँचकर अग्रसर हुआ, राज सेना के साथ पाद-टिप्पणी भूकम्प में किला गिर गया है। सोपोर में रंगीचक ने ९०. बम्बई का ८९ वां श्लोक तथा कलकत्ता की किला निर्माण कराया था, वह भूचाल से गिर गया । २०३वी पंक्ति है। समीप है। इस समय तिजायहाँ से टिटवाल, मच्छीपुर, लिये मार्ग जाते हैं । यहाँ सुम्पपुर उत्तर लेक के रत की बडी मण्डी है । हिन्दवारह, बान्दीपुर के पाद-टिप्पणी श्रीस्तीन ने 'सूय्यपुर' ही नाम दिया है। 'सुय्य' पर कालेज तथा बालिका एवं बालक विद्यालय भी है पाठ स्वीकार किया गया है । ( द्रष्टव्य : रा० : ५ : ११८; ८ : ३१२८, जोन० : ३४०, ८६८; शुक० १ ८०, ९१ ) । बम्बई का ९०वी श्लोक तथा कलकत्ता की ३०४वी पंक्ति है। : ९१. (१) सुय्यपुर कल्हण सुय्यपुर के निर्माण पर प्रकाश डालता है । कल्हण के अनुसार वितस्ता के दोनों तटो पर सुय्यपुर आबाद था, जो आज भी स्थित है । सन् १८९९ ई० मे सुय्यपुर अर्थात् सोपोर की आबादी आठ हजार थी । इस समय यहाँ आधुनिक नगर के सभी प्रसाधन उपलब्ध है। जैनुल आबदीन ने सन् १४६० ६० में दोनों तटों की आबादी को सम्बन्धित करने के लिये पुल को बनवाया था । श्रीनगर बारहमूला राजपथ के मध्य बारहमूला से १० मिल पर स्थित है । सोपोर से श्रीनगर नाव द्वारा १४ घण्टा, बारहमूला ३ || घण्टा में पहुंचते है । गुलमर्ग सोपुर से १७ मिल दक्षिण-पश्चिम है । सोपुर से वादीपुर १६ मिल है । यहाँ एक किला भी था। पुल के नीचे नदी २८ फीट गहरी है । दक्षिण दिशा में एक शिव मन्दिर है । इसके सामने दूसरे तट पर एक मसजिद है। सन् १८८५ ई० के पीर हसन लिखता है - हाजी खाँ ने पैगाम पाते ही कूच करके, कसवा सोपोर में आकर क़याम किया ( पृ० १८४ ) । तवक्काते अकबरी में उल्लेख मिलता है'आदम of किपराज (कामराज पहुँच कर अविलम्ब वहाँ से निकला और सोयापुर ( सुय्यपुर ) पर उसने आक्रमण किया । वहाँ का हाकिम, जो सुलतान के पूर्व से ही वहाँ के अधिकार मे या निकल कर युद्ध किया और मारा गया ( ४४४ = ६६७) ।' बीवर हाकिम का नाम नत्यभट्ट देता है । फिरिश्ता लिखता है— उसे मदद देने के स्थान पर हाजी खाँ ने भाई ( आदम खाँ ) पर आक्रमण कर दिया। हाजी खाँ शीवपुर ( सोपोर) मे पराजित हो गया। जिसे आदम खाँ ने नष्ट कर दिया । इस समाचार के मिलते ही सुस्तान ने अपनी सम्पूर्ण सेना आदम खाँ पर आक्रमण करने के लिये भेजा ( ४०३) ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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