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________________ २८ जैनराजतरंगिणी [१:३:८२-८४ वितस्तान्तर्वसदारुशैलपूर्णचतुर्ग्रहम् तरदायामपङ्क्त्यश्वदशकं नगरान्तरे ॥ ८२ ॥ ८२. नगर में वितस्ता के मध्य बसने वाले काष्ट एवं शैल से पूर्ण, चर्तुगृह से युक्त, तरद (पार करने वाले) पंक्तिबद्ध दश अश्वों की चौड़ाई से युक्त सेतुबन्धं व्यधाज्जैनकदलाख्यमयं नृपः । स्वकृतं तं तदाज्ञासीत् स्वविघ्नमिव भीतिदम् ।। ८३ ॥ ८३. जैन कदल नामक सेतुबन्ध को इस राजा ने बनवाया। उस समय स्वकृत उसे अपने विघ्न के समान भयप्रद जाना। नगरोपप्लवाशङ्की संत्रस्तो यत्नमास्थितः। पुरान्निष्कासयामास तं सुतं मन्त्रयुक्तिभिः ॥ ८४ ॥ ८४. नगर में उपद्रव की आशंका से सन्त्रस्त, उसने यत्नपूर्वक मन्त्र' युक्तियों से, उस पुत्र को नगर से निकलवा दिया। का अर्थ महारथी कर्ण तथा सुनना दोनों है। कर्ण (१) मन्त्र = पीर हसन लिखता है-सुल्तान दुरुक्तियों से पूर्ण होकर, युद्धक्षेत्र में गया था, यहाँ को दहशत पैदा हुई. इस बिनापर उसे नरमी और सुल्तान का इतना कान भर दिया गया था कि वह, था कि वह, मदारा से कामराज की तरफ भेज दिया (पृष्ठ र उन दुरुक्तियों से प्रभावित होकर, युद्ध की तैयारी १८४)। करने लगा। पाद-टिप्पणी: म्युनिख पाण्डलिपि में उल्लेख मिलता है कि ८२. बम्बई का ८१ वा श्लोक तथा कलकत्ता सुल्तान ने पुत्र समझा-बुझाकर उसे कामराज भेज की २९५ वीं पंक्ति है। दिया। आसन्न युद्ध की स्थिति समाप्त हो गयी _ 'पङ्कत्त्पश्च' का फारसी अर्थ 'दह सवार' (म्युनिख : ७५ बी.)। अर्थात् दश अश्वारोही दिया गया है। तवक्काते अकबरी में उल्लेख है-'सुल्तान ने पाद-टिप्पणी : किसी न किसी युक्ति से उसको प्रोत्साहन देकर, ८३. बम्बई का ८२ वा श्लोक तथा कलकत्ता किमराज की विलायत की ओर पुनः भेज दिया की २९६ वीं पंक्ति है। (४४३ = ६६६ )। पाद-टिप्पणी : ८४. पाठ-बम्बई फिरिश्ता लिखता है-सुल्तान ने आदम खाँ बम्बई का ८३ वा श्लोक तथा कलकत्ता की को समझा-बुझाकर उसे, गुजरात ( क्रमराज्य ) का २९७ वी पंक्ति है। सूबा देकर भेज दिया (४७२)।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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