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________________ जैनराजतरंगिणी [१:३:७५-७८ सेवकानौचिती तस्य कियती वर्ण्यते मया । ये श्वमूर्धनि वास्तव्यान् घृताभ्यङ्गमकारयन् ।। ७५ ।। ___७५. उसके सेवकों का अनौचित्य कितना वर्णन करूं, जिन लोगों ने ग्रामीणो के शिर पर घी का लेप कराया। हसन्तीरिव ज्वालाभिस्तैलपूर्णा हसन्तिकाः । तान् कारयित्वा ये दीपान् निशास्वज्वलयञ्शठाः ॥ ७६ ॥ ७६. और जिन सठों ने रात्रि में ज्वालाओं से हँसती हुई के समान, जिन्हे तैलपूर्ण हसन्तिका बनाकर दीप जलाये थे इत्यादि कुत्सिताचारं भारात इव भूपतिः । विज्ञप्योद्वेजितो लोकैर्निर्गन्तुं नाशकद् गृहात् ॥ ७७ ॥ ७७. इत्यादि कुत्सित आचार को जानकर, भारपीड़ित के समान, राजा उद्वेजित हुआ और घर से (लोगों के कारण) बाहर निकल नहीं सका। पीडां मा कुरुतेत्यादि राजदूते ब्रुवत्यमी । अवोचन्निति तभृत्या राजा क्रन्दतु पीडितः ॥ ७८ ।। ७८. 'पीड़ा मत दो'-इस प्रकार राजदूत के कहने पर, उसके (आदम खां के) भृत्यों ने इस प्रकार कहा पाद-टिप्पणी : लोग बादशाह की खिदमत में आकर फिरयादी हए । ७५. बम्बई ७४वा श्लोक तथा कलकत्ता की बादशाह हुक्म उसे देता था, आदम खाँ उससे २८८वीं पंक्ति है। बिल्कुल कबूल न करता था (पृष्ठ १८४)। पाद-टिप्पणो : तवक्काते अकबरी मे उल्लेख है-आदम खां ने किमराज । ( कामराज ) की विलायत पर अधिकार बम्बई का ७५वा श्लोक तथा कलकत्ता की । जमाकर नाना प्रकार के अत्याचार प्रारम्भ कर दिये २८९वी पंक्ति है। और बहुत से लोग उसके अत्याचारों से पीडित होकर ७६. (१) हसन्तिका : कागड़ी। सुलतान की सेवा में न्याय की याचना करने पहुँचे । पाद-टिप्पणी : सुलतान की ओर से जो फरमान उसके पास पहुंचते थे वह उसे स्वीकार न करता था (४४३-६६६)। २९०वीं पंक्ति है। फिरिश्ता लिखता है-गुजरज (क्रमराज्य) की पाद-टिप्पणी जनता आदम खाँ के अत्याचार से पीड़ित हो उठी। बम्बई का ७७वा श्लोक तथा कलकत्ता की। जनता ने श्रीनगर में सुलतान के सम्मुख शिकायत की, २९१वी पंक्ति है। सुलतान ने लगातार उसके पास अत्याचार से विरत ७८. (१) पीर हसन लिखता है-फरियादी होने के लिये सन्देश भेजा ( ४७२ )।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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