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________________ १२ जैन राजतरंगिणी लिये आदर्श अनुकरणीय उदाहरण उपस्थित करता है । जिस घर में साध्वी नारी हो । वह घर नहीं मंगल आवास है । मंगल मन्दिर है । पवित्र स्थान है । सती का जागृत गेह है । श्री लल्लनजी स्वयं लन्दन के पी-एच० डी० हैं । हिन्दू विश्वविद्यालय में कला संकाय के डीन हैं । विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष हैं । किन्तु उनमें विद्या गर्व के स्थान पर सरलता, पद गौरव के स्थान पर, पद मर्मादा का निर्वाह और न जाने कितने अमित गुण हैं । मैं जो कुछ लिख सका, यह विशाल ग्रन्थ समाप्त कर सका, सबका श्रेय उन्हीं को है । इस दशक के अधिकांश सायंकाल उनके यहाँ विचार-विमर्श, ग्रन्थावलोकन, अप्रकाशित अनुसन्धान ग्रन्थपठन में लगे हैं। उनसे जब परिचय हुआ, तो वे रवीन्द्रपुरी में रहते थे । तत्पश्चात ईट पर ईंट बैठती, गुरुधाम में निजी मकान रूप में परिणत हो गयी । उनके पुत्र सर्वश्री उत्पल, पुष्कल, पंकज, नीरज एवं सरसिज माँ की गोद से खेलतेखेलते, मैदानों में खेलने लगे और मेरी पुस्तकें भी पत्राकार से खण्डाकार होती गयी । इतना लम्बा काल एक कुटुम्ब में, मेरे जैसे अपरिचित, विजातीय, वयस्क का कैसे बीत गया, यह स्वत: एक अनुसन्धान का विषय है | उनके प्रति, उनके कुटुम्ब के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन के लिये कृतज्ञता शब्द लघु लगता है । एक स्नेही : एक कुटुम्ब और है । श्री बलरामदास जी जोहरी पुत्र श्री जमुनादास जौहरी प्रिन्सेप स्ट्रीट कलकत्ता । यहाँ मेरा प्रवाश काल बीतता था । उदयपुर जिक लिमिटेड (सरकारी) संस्थान के अध्यक्ष होने पर, पक्ष में एक दिन उनके यहाँ ठहरता था । कम्पनी का विशाल कार्यालय कलकत्ता कैनेग रोड पर था । मोटर, नौकर, चाकर, एयर कण्डीशन आतिथ्य स्थान, सब कुछ आधुनिक प्रमाधकों से पूर्ण सज्जित था । वहाँ मैं पहली बार गया । श्री बलराम जी को मालूम हुआ । वे अपने यहाँ चलने के लिए बोले । मैं उनके सत्कार स्नेहभाव से दब गया । उसी समय उनके दो कमरे वाले फ्लैट में पहुँच गया । युनाइटेड कमर्शियल बैंक का डाइरेक्टर होने पर पक्ष में एक बार संचालक मण्डल की बैठक में भाग लेने कलकत्ता आता था । इस प्रकार प्रतिसप्ताह बलराम जी के यहाँ ठहरना होता था । उनकी धर्मपत्नी श्रीमती प्रमिला देवी ने जिस सौजन्यता से आतिथ्य किया है, वह वर्णनातीत है । मैं आज भी युनाइटेड कमर्शियल बैंक लिमिटेड पुरानी कम्पनी का डाइरेक्टर हूँ। वर्ष में चार या पांच बार जाना होता है । यह एक अति कोमल सूत्र है । जिसके कारण अबतक मैं उस आतिथ्य से वंचित नहीं हुआ हूँ । समस्त राज तरंगिणी प्रणयन काल में इस कुटुम्ब से सम्बन्ध पूर्वक्त बना रहा। वहाँ ठहरने पर, पाण्डुलिपियों को ठीक करता था । श्रीमती प्रमिला देवी के सरल स्वभाव से इतना प्रभावित था कि मैं भात न भात खाता था । प्रातः एवं सायं काल जलपान न करने पर भी करता था । उनके स्नेहमय आतिथ्य के कारण मुझे कभी न कहने का साहस नहीं हुआ । वह हमारे नियम से इतनी परिचित हो गई थी कि ९ वर्षों के लम्बे काल में . मुझे कभी कुछ माँगना नहीं पड़ा । हमारे समय से चाय आ जाती थी । समय पर पानी मिल जाता था । समय पर खाना मिलता था । मैंने एक क्षण के लिए भी अनुभव नहीं किया। अपने घर से बाहर हूँ । उनके पुत्र चि० राजीव जौहरी ९ वर्षों से बढ़कर १८ वर्ष के हो गये और कुमारी नीरज जौहरी १० वर्ष से बढ़कर १९ वर्ष की जैसे वय प्राप्त करती गई, हमारी राजतरंगिणी का भी उसी प्रकार आकार बढ़ता गया । उनका काशी का प्रतिष्ठित कुटुम्ब है । यह गुजराती परिवार लगभग ४५० वर्ष पूर्व काशी में गुजरात के भड़ौच जिला, ग्राम मोड़ से आकर आवाद है । इसी कुटुम्ब के व्यवसाय की एक शाखा कलकत्ता में है । परिवार ने विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान काशी के सामाजिक जीवन में बना लिया है । उनके प्रति आभार प्रकट करना आभार शब्द मुझे छोटा लगता है । खाने पर भी, उनके यहाँ
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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