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________________ (१० जैनराजतरंगिणी [१:२:२६-३० किमन्यत् कुत्रचिद् राष्ट्रे धात्रा निष्किञ्चनो जनः। अभवन्मण्डकुण्डस्य काञ्चिकेनापि वञ्चितः ॥ २६ ॥ २६. अधिक (वर्णन) क्या (कहे ?) कहीं पर राष्ट्र में विधाता निष्किचन जन को भाण्ड कूण्ड के काञ्चिक मात्र से भी वंचित कर दिया था। यत् पूर्वमकरोद्धेलां रसवव्रीहिशालिषु । मन्ये तेनैव शापेन भयमापत् प्रजेदृशम् ।। २७ ।। २७. जो पहले सुस्वादु ब्रीहि' एवं शालियों के प्रति अवहेलना किये, मानो उसी शाप से प्रजा भय प्राप्त की। करुणाकुलियो राजा स्वधान्यैः पुत्रवत् प्रजाः । पोषयामास मासेषु केषुचिद् यावदाकुलाः ॥ २८ ॥ २८. दयालु राजा ने अपने धान्यों से पुत्र के समान, कुछ मासों तक, व्याकुल प्रजा का पोषण किया। तावदस्यैव माहात्म्यात् शस्यसंपद्वयजृम्भत । सत्यव्रतानां भूपानां क्वावकाशश्चिरं शुचाम् ॥ २९ ॥ २९. तब तक, इसी माहात्म्य से प्रचुर शस्य सन्पत्ति पैदा हुई। सत्यव्रती राजाओं के लिए चिरकाल तक शोक कहा? मध्येऽथवा विधिर्भूपकारुण्यप्रथनेच्छया । दौर्भिक्षदौस्थ्याद् भूलोकं सशोकमकरोत् तदा ॥ ३० ॥ ३०. अथवा लगता है कि, विधाता ने राजा की दयालुता को प्रसिद्ध करने की इच्छा से दुर्भिक्ष की दुःस्थिति से, भूलोक को उस समय शोक युक्त कर दिया। रहा है। अकबरनामा के अनुसार एक खरवार अक- अधिकांश लोग भूख के कारण मृत्यु को प्राप्त हो बरशाही तौल के अनुसार ३ मन ८ सेर का होता गये। इस कारण सुल्तान बड़ा दुःखी हुआ। और था (पृष्ठ : ८३१)। द्रष्टव्य : म्युनिख : पाण्डु० : उसने अधिकांश खजाना तथा अनाज लोगों में बाँट ७५ बी०। दिये ( ४४३-६६५)। पाद-टिप्पणी: पाद-टिप्पणी: २७. ( १ ) ब्रीही : चावल का दाना । ३०. उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण का २०७वाँ पाद-टिप्पणी तथा बम्बई का ३०वा श्लोक है। २८. (१) पोषण : तवकाते अकबरी में कलकत्ता के रिधि' के स्थान पर बम्बई का उल्लेख है-'काश्मीर में घोर अकाल पड़ा और विधि' उचित है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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