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________________ १ : १ : १६९-१७० ] श्रीवरकृता अन्येबुर्हतशिष्टांस्तान् भृत्यानानीय पूर्ववत् । हाज्यखानः सानुतापश्चिभदेशे स्थितिं व्याधात् ॥ १६९ ।। १६९. दूसरे दिन मरने से बचे, उन भृत्यों को लाकर, पश्चाताप युक्त, हाजी खाँ ने पूर्ववत् चिभ देश में अपनी स्थिति बनायी। खिन्नानाश्वासयन् कांश्चित् संभिन्नान् प्रतिपालयन् । भक्षयन् क्षुधयाक्षीणान् नगाग्रे सोऽनयन्निशाम् ।। १७० ॥ १७०. कुछ दुःखियों को आस्वस्थ तथा हतों को प्रतिपालित एवं क्षुधा क्षीण जनों को खिलाते हुए, पर्वत के ऊपर रात्रि व्यतीत किया। नियोगज पुत्र धृतराष्ट्र एवं पाण्डु हुए। धृतराष्ट्र थे। डोगरा हिन्दू रह गये और चिभाली मुसलिम धर्म जन्मान्ध थे। अतएव पाण्डु को राजसिंहासन प्राप्त स्वीकार कर लिये । मुसलिम जाट भी चिभाली जाति हआ। पाण्डु का शीघ्र ही देहावसान हो गया । धृत- में मिल गये हैं। वे कृषक कार्य करते है। पूर्वीय राष्ट्र ने शासनसूत्र सम्हाला । धृतराष्ट्र के दुर्योधनादि चिभाली अंचल के मुसलमान ठाकुर है। उनमे उच्च एक शत तथा पाण्डु को पाँच पुत्र हुए। वे क्रम से वर्ग के सुदन कहे जाते हैं। चिवाली लोगों का रूप कौरव एवं पाण्डव कहे गये। महाभारत युद्ध के डोगरों से मिलता है, केवल मुसलिम चिभाली अपनी पश्चात् युधिष्ठिर राजा हुए। कृष्ण की मृत्यु के मूछ बीच से अर्थात नाक के नीचे छटा देते है। पश्चात् युधिष्ठिर भाइयों तथा द्रौपदी सहित हिमालय शताब्दी पूर्व मुसलमान तथा हिन्दुओं में परस्पर मे प्राण त्याग निमित्त चले गये । अर्जुन के पौत्र तथा विवाह होता था। दोनों ही अपने धर्म को मानते अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित राजा बना । परीक्षित के थे । अपने घरों में मसलमान देवता भी रखते थे । पश्चात् जनमेजय राजा हुए। जनमेजय के तीसरी परन्तु यह सब अब लुप्त हो गया है। पीढी में अधिसीम कृष्ण राजा हुआ। उसके समय परशियन इतिहासकार लिखते है कि हाजी खाँ सबसे पहले नैमिषारण्य मे महाभारत तथा पुराणों हीरपुर अपने शेष साथियों के साथ भाग आया और का परायण हुआ। अधिसीम कृष्ण का पुत्र निचक्षु वहाँ से भीमवर चला गया (म्युनिख : पाण्डु : ७५. ए. था। वह हस्तिनापुर का अन्तिम राजा था। बी. तवक्काते अकबरी : ३ : ४४२-४३ = ६६४) । हस्तिनापुर गंगा में बह गयी। राजा तथा प्रजा फरिस्ता दूसरे स्थान पर नाम देता है-'हाजी प्रयाग के समीप आकर वत्स क्षेत्र में शरण लिये। खाँ अपनी सेना को पुनः एकत्रित कर वहाँ अपनी पाद-टिप्पणी: स्थिति बनाकर 'नीरे' नगर लौटा आया (४७२) । १६९. (१) चिभदेश = भीमवर श्रीदत्त ने चिभ द्रष्टव्य : पाद-टिप्पणी जैन० : १:१ : ४७ । को चित्र लिखा है। कलकत्ता तथा बम्बई संस्करणों तवक्काते अकबरी के पाण्डुलिपि में 'ववज' 'वनीर' में 'चित्र' शब्द मिलता है। दत्त ने भी चित्र ही तथा 'वनीर' और लीथो संस्करण में 'नीर' और लिखा है। परन्तु चित्र नामक कोई देश नहीं है। फिरिस्ता के लीथो संस्करण मे 'नीर' दिया गया है। चिभ देश कश्मीर के सीमान्त दक्षिण में है । अतएव रोजर्स तथा कैम्ब्रिज हिस्ट्री आफ इण्डिया में लिपिक की गल्ती से 'चिभ' को 'चित्र' लिख दिया 'भीमवर' दिया गया है ( ३ : २८३ )। गया है। पाद-टिप्पणी: चिव राजपतों की एक उपजाति है। चिभाली १७०. कलकत्ता के 'अक्षवम' के स्थान पर मुसलमान भी पूर्वकाल में चिव या डोगरा जाति के बम्बई का 'अक्षपन' पाठ उचित है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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