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________________ भूमिका । सामने खड़ा होकर, मार्गावरोध कर देता था । निश्चय किया करूँ ? बात कहने की रह जायगी मर गया। हाथ नहीं पसारा याचना, आज तक नहीं किया । अब क्यों वाचना नहीं की अहसान नहीं लिया । मिलती । घण्टों रुकना प्रतिदिन की इस लम्बी दौड़ में, कष्ट का अनुभव होता । सवारी नहीं पड़ता । काशी विश्वविद्यालय मोटर बस पर दो-एक बार गया । परिचित भीड़ में आदर भाव से स्थान दे देते थे । स्वयं खड़े हो जाते थे । यह मुझे अच्छा नहीं लगा। बस की यात्रा त्याग दिया । रिक्सा मिलता था । महँगा पड़ता था । अखरता था । आमदनी कुछ नहीं थी । सब खर्च ही खर्च था । 1 । कुछ किताबें आवश्यक थीं। प्रारम्भ से ही पढ़ने का शौक था अपने पुस्तकालय में तीन हजार पुस्तकें थीं। लगभग एक हजार कानून की किताबें और जनरल थे। कानूनी जनरलों की कीमत पांच गुनी बढ़ गई थी । केवल सीरीज कायम रखने के लिए, उनका खरीदना बन्द कर दिया। वे हमारे लिये उपयोगी भी नहीं रह गई थीं। हजारों रुपये प्रति वर्ष खर्च हो जाते थे। पुस्तकें बड़ी होती थीं अनुपात से उनकी कीमत भी बढ़ी थी । अर्थाभाव के कारण अनेक पुस्तकों से वंचित रहा । अनेक पुस्तकें भारत में अप्राप्य थीं। उन्हें विदेशों से मगाने में छ मास लग जाते थे । काश्मीर सम्बन्धी प्रचुर साहित्य एवं सामग्रियाँ हैं । बिखरी हैं। विदेशों में पाण्डुलिपियाँ हैं । उनका दर्शन दुर्लभ है । भारत से बाहर उन्हें देखने एवं पढ़ने का अवसर नहीं मिल सका । उससे कठिन था । राजपुरुषों के यहाँ हाजिरी देना । राज-कर्मचारियों के यहाँ चक्कर लगाना, गिड़गिड़ाना, अपमानित और उपेक्षित होना विदेशी मुद्रा प्राप्ति की परेशानी, उसके लिए सरकारी कार्यालयों में ठोकरें खाते रहने की अपेक्षा, चुप होकर बैठ रहना अच्छा समझा । उपेक्षा किसी विश्वविद्यालय के माध्यम से पुस्तकें माइको फिल्म मँगाने का मैं अधिकारी नहीं था। तथापि कुछ मित्रता के कारण मित्रों ने मँगा दिया था। उनसे कुछ काम निकाला है। द्वितीय संस्करण यदि अपने जीवित काल में हो गया, तो भविष्य के खण्डों को पूर्ण करने का प्रयास करूँगा । एक बड़ी आश्चर्य की बात है। काश्मीर पर इतना लिखने पश्चात् भी साहित्यिक जगत, सरकारी जगत, काश्मीरी जगत प्रोत्साहन मिला और न किसी ने इस काम में रुचि दिखाई। जैसे 1 9 इतना समय एवं धन बर्बाद करने के 3 किसी ओर से किसी प्रकार का न तो यह काम मेरा ही था । मुसलिम बहुल प्रदेश है। दोष किसी का नहीं परिस्थितियों का है। काश्मीर संस्कृत भाषा एवं हिन्दी के प्रति पाँच प्रतिशत काश्मीरी पण्डित तथा जम्मू क्षेत्र के हिन्दी भाषा भाषियों की रुचि है। प्रस्तुत ग्रन्थ काश्मीर से सम्बन्धित है, जब काश्मीरियों को इसमें रुचि नहीं है, तो दूसरों का न होना क्या आश्चर्य है ? मैंने ऐसा विषय चुना। जिसका सम्बन्ध एक मृत इतिहास से है, जिसके लिये गौरव का अनुभव करने वाले विरले हैं । मैंने जाने या अनजाने कलम उठाई । काम पूरा करना था । बीच में छोड़कर भागना कायरता थी । इसके लिये अपनी आर्थिक बरबादी सह्य हुईं। कोई पुस्तक की स्तुति करता है या निन्दा, यह मेरे चिन्तन का विषय नहीं है। प्रकाशन के लिए प्रकाशकों के यहाँ चक्कर लगाता रहा । कुछ को छोड़कर सभी प्रकाशक, सरकारी प्रश्रय प्राप्त, सरकारी सहायता प्राप्त, विश्वविद्यालयों के प्रश्रय प्राप्त थे, उनकी दुकानदारी
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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