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________________ १:१ . ९५-९९] श्रीवरकृता देव त्वत्सेवकाः सर्वे स्वगृहोत्कण्ठिताशयाः । देशकालावनालोच्य कथयन्त्यसुखप्रदम् ।। ९५॥ ९५. 'हे ! देव !! तुम्हारे सेवकों का मन घर के प्रति उत्कण्ठित है। अतः देश-काल की चिन्ता न कर, असुखप्रद बात कर रहे हैं। कथमभ्यन्तरं यामः सति राज्ञि बलोजिते । प्रदीप्तं व्योम्नि मार्तण्डं कुण्डेन पिदधाति कः ।। ९६ ॥ ९६. 'बलोजित राजा के रहते, कैसे अन्तर प्रवेश करेगे? आकाश में प्रदीप्त मार्तण्ड को कुण्ड से कौन आच्छादित करता है। यावज्जीवति भूपालस्तावत् को बाधितुं क्षमः । मनोऽनुवर्तनं कर्तुं तयुक्तं तव साम्प्रतम् ॥ ९७ ।। ९७. 'जब तक राजा जीवित है, तब तक कौन बाधित कर सकता है? अतः इस समय उसके मन का अनुवर्तन करना उचित है। प्रसन्ने जनकेऽस्माकं भवेयुः का न सम्पदः । ईश्वरे च गुरौ भक्तिर्जायते पुण्यकर्मणाम् ।। ९८ ॥ ९८. 'पिता के प्रसन्न होने पर, हमलोगों के लिये कौन-सी सम्पत्तियाँ प्राप्त नहीं हो सकती? ईश्वर एवं पिता में भक्ति पूण्यशालियों की ही होती है। अस्य कोपेन यत् साध्यं परानुग्रहतो न तत् । दुर्दिने या रवेर्दीप्तिः प्रदीपाज्ज्वलतो न सा ॥ ९९ ॥ ९९. 'इसके कोप से जो साध्य है, वह दूसरे के अनुग्रह से नहीं (होगी) ? दुर्दिन में सूर्य की जो दीप्ति होती है, वह दीप्ति जलते दीपक से (सम्भव) नहीं। २ लेखक ) पराजित होने के पश्चात् (सन् ९०६- तान्त्र जाति की विशेषताये क्या थी, अब पता नही ९३० ई० ) बहुत बढ गयी थी ( रा० ५ : २४९- चलता। वे अपने मूल स्वरूप एवं परम्परा को भूल ३४०)। गये है । लारेन्स ने उनके विषय में लिखा हैप्राचीन रोमन साम्राज्य के प्रेट्रोरियन गार्ड के 'वैवाहिक सम्बन्ध में उनमें किसी प्रकार का प्रतिसमान उनकी स्थिति हो गयी थी। अश्वारोहियों बन्ध नहीं है। तान्त्र वर्ग का कोई मुसलमान से वे भिन्न थे ( रा० : ७ : १५१३, ८ : ३७५, तान्त्र काम अथवा ग्राम के किसी मुसलिम कन्या से ९३२, ९३७)। तन्त्री राजा के अंगरक्षक रूप से विवाह कर सकता है। केवल एक ही प्रतिबन्ध है। भी कार्य करते थे ( रा० . ८:३०३ )। तन्त्रियों उन्हे ग्रामीण कृषक होना चाहिये' (वैली : का नाम 'काम' में आता है। वे तान्त्र कहे जाते ३०६ )। है। तान्त्र काश्मीर मे मुसलिम कृषकों में अधिक पाये जाते है । वे पूर्वकालीन तन्त्रिवंशीय है। उनमें पाद-टिप्पणी: अनेक भेदभाव थे। उनका अब लोप हो गया है। ९९. पाठ-बम्बई
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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