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________________ १०८ जैनराजतरंगिणी इस राजा विपर्य के सम्बन्ध मे श्रीवर राज तरंगिणी का अन्तिम तीन श्लोक लिखता है-'वह राज्य विपर्यय सार्वजनिक कोशरूप सर्प को दूर करने के लिये नागाडा, द्वेषी प्राचीन सेवक रूप कमल बन के लिये हेमन्त का उदय, भूपति के पृथ्वी रूप भद्र गोलक (छत्ता) पर स्थित सरघा (मधुमक्खिी ) समूह के लिये धूमोद्गम तथा नव सभा रूप उद्यान के लिये वसन्त ऋतु था। अपने आचार विपर्यय या अन्याय से धनोपार्जन के कारण, सज्जनों के साथ द्रोह करने अथवा अच्छे लोगो के वर्ण शकरता के कारण, शिशु राजा के सामर्थ्य अथवा मन्त्रियों के द्वेष के कारण, सुस्सल भूपति के राज्यकाल के समान, राज्य में प्रजा का यह उपद्रव हुआ। जिसने सैयिदो संघर्ष मे रण रसिकता के कारण वन्धन में स्थित, लोगों को मुवत कर दिया । जिस सिद्धादेश अधिकारी ने शत्रुओं को जीतकर, प्रसिद्ध प्राप्त की. जिसने शत्रु समुदाय का नाश करके, राजा फतह के राज्य को विस्तृत कर दिया, डामरेन्द्र श्रेष्ठ सचिवपति, वह अद्वितीय सैफ मल्लिक विजयी हो।' (४.६५४-६५६)
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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