SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका १०१ मार्गपति जहांगीर तथा मल्लिक दोनों की सेनायें आमने-सामने देखकर राजधानी प्रासाद प्रांगण में पहुंचा संभ्रम से चंचल हो उठी। मल्लिक ने सैयिदो से मिलकर नगर मध्य मौर्चाबन्दी कर ली । 2 राजानक जोनराज सहित विजयी जहाँगीर ने ताजभट्ट को मुक्त कर दिया। राजधानी प्रांगण रौद डाला । ताजभट्ट के सैनिकों ने राजधानी का पश्चिमी द्वार जला दिया । उस अग्नि ने हसन राजानक के आवाश पर्यन्त भवनो को जला दिया। राजप्रासाद के प्रागण मे जलती अग्नि देखकर, राजसेवकों सहित राजा भयभीत हो गया । मल्लिक के सेवकों ने उसका साथ त्याग दिया। वह पुत्रों सहित किंकर्तव्यविमूढ हो गया । स्तब्ध खड़ा रहा । मल्लिक ने पुत्रो के प्राण भय के कारण, युद्ध का निषेध किया । राजा ने पूर्व सेवा का स्मरण कर, आयुक्त की रक्षा की । युद्ध मे असमर्थ आयुक्त नत्यक आदि भुट्ट देश चले गये । उत्तर द्वार से विजयी, जयोद्धत जहाँगीर आदि गरजते हुए, नृपांगण मे प्रवेश किये। राजा ने पुत्र सहित मल्लिक को बन्दी बना लिया | उन्हें कारागार मे डाल दिया गया । मलिक की सम्पत्ति हरण कर ली गयी । राजा ने जुग्गभट्ट को कारागार में उसके पास स्वर्ण राशि का पता पूछने के लिये भेजा । उसने अपनी पूर्व सेवाओं का स्मरण दिलाया। राजा को विज्ञप्ति भेजा । सैयों का प्राबल्य हो गया। वे जनता का आर्थिक शोषणा करने लगे । जहाँगीर मार्गेश एवं नोस राजा श्री सम्पन्न हो गये । मियाँ हसन ने मल्लिक की पदवी प्राप्त कर नाग्राम आदि पर अधिकार कर लिया मियाँ महम्मद को अर्धवन राष्ट्र दिया गया दिल्ली से सैयद नासिर को बुलाने के लिये दूत भेजा गया । शूरपुर अध्वन से पांचाल देव, पहुँचते-पहुँचते नासिर ज्वराक्रान्त हो गया। पौत्री (रानी) जमात (राजा) एवं सब मन्त्रीगण उससे मिले । वह दो दिन ज्वरग्रस्त रहकर, मर गया। इसी समय मल्लिक भी कारागार में मर गया । पुत्रीके भाग्य रूप सौभाग्य से सम्प्राप्त, विभव से ऊर्जित, सैयिद गण काश्मीरियों की पद पद पर उपेक्षा करने लगे। राजा भी संविदों का मुखापेक्षी हो गया। अधिकारी गण उत्कोच अर्थात् धूस ग्रहण करना धर्म, प्रजा-पीड़न कौशल, स्त्रियो में व्यसन सुख, मानने लगे । राहु के समान सैयिद हसन काश्मीर मण्डल पर आक्रान्त हो गया । नासिर को भेजा। उन मे एक जहाँगीर ने राजा को सैयियों थियों ने छोटे एवं बड़े मौड़ देश को जीतने के लिये जहाँगीर एवं ने विजय प्राप्त की और दूसरा बन्दी बन गया। युक्ति से अपनी रक्षा की। से सतर्क रहने की सलाह दी। सैयद कन्या, रानी के पास से मुक्त होने के लिये कहा। । किन्तु रात्रि मे राजा ने अपनी रानी सैयिद कन्या से सब बातें बता दी। रानी सर्पिणी के समान क्रुद्ध हो गयी। जहाँगीर के अनिष्ठ की चिन्ता करने लगी। जहाँगीर समाचार पाते ही कर्कोट द्रंग मार्ग से बाहर निकल गया। भोगिला से कुटुम्ब सामग्री लेकर वह दुर्गमार्ग से गमन किया। सैयिद से समन्वित राजा आयुक्त अहमद एवं जहाँगीर की अनुपस्थिति में अपने को पथभ्रष्ट सदृश अनुभव करने लगा। सैयदों तथा भार्या के आधीनबुद्धि राजा था । उसका व्यवहार विशृंखलित था। दिन पर दिन राजा की अन्तरंग स्त्रियाँ होती गयीं । मन्त्री और सेवकों से दूर होता गया। काश्मीर की स्थिति बिगड़ती मियाँ हस्सन सर्प गयी । जहाँगीर मार्गेश ने पुनः राजा को सावधान किया । मार्गेश के पत्र की बात जानकर, सदृश क्रुद्ध हो गया । अनिष्ट की आशंका से मद्र देशीय परशुराम आदि काश्मीर देश से जाने के लिये आज्ञा मांगने लगे । किन्तु तत्काल उन्हें पाथेय तथा मुक्ताक्षर नहीं दिया गया। मद्रों में शंका घर कर गयी। सैयिदो से विरक्त
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy