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________________ जैनराजतरंगिणी बना । मार डाला गया । सुल्तान के जीवन के अन्तिम चरण में बोघा खातून उसकी पत्नी का अन्तकाल हो गया । वह सैयिद वशीय थी। सिन्धुपति सुल्तान का भगिनीपुत्र था। वह इब्राहीम लोदी द्वारा परास्त किया गया। मारा गया । राजा के विश्वस्त मंत्री एवं साथी भी मारे गये। वह पथभ्रष्ट गज तुल्य हो गया। हाजी खां अत्यधिक मद पीता था। उसे अतिसार हो गया। सुल्तान ने पुत्र को मद्यपान से विरत करने की चेष्टा की, परन्तु विफल रहा। मन्त्रियों ने आदम खाँ को विदेश से पुनः काश्मीर में राज्य करने के लिए आमन्त्रित किया। राजा उसका आगमन सुनकर भी, उदासीन रहा । हाजी खाँ का पुत्र हसन खाँ का आगमन सुनकर राजपुरी से पर्णोत्स पहुँच गया । चाचा और भतीजा मे प्रचण्ड युद्ध हुआ। सुल्तान ने बहराम खां को उत्तराधिकार देना चाहा। परन्तु उसने अस्वीकार कर दिया। आदम खाँ यद्यपि काश्मीर आया परन्तु आत्मरक्षा में समर्थ नहीं हो सका । पुत्रो का रक्तपात एवं राज्य लिप्सा देखकर, सुल्तान में विराग स्फुरित हो गया। वह श्रीवर से रात्रि में मोक्षोपम संहिता सुनाता था । 'शिकायत' नामक फारसी भाषा मे ग्रन्थ भी लिखा। इस समय राजनैतिक स्थिति अस्थिर थी। किसी की किसी के प्रति निष्ठा नहीं थी। दल बदल का जोर था। प्रतिदिन दल बदल होता था। पुत्रों तथा परिवार वालो के व्यवहार से राजा खिन्न हो गया। राजा के तीनों पुत्रों का एक दूसरे के प्रति अविश्वास था। राजा ने विरक्त होकर शासन मन्त्रियों को दे दिया । छाया में भी विश्वास करने से हिचकता था। (१:७१,३) रमजान मास आने पर, सुल्तान ने मांस भक्षण त्याग दिया। सुल्तान बीमार पड़ा । उसके रोग का निदान नहीं हो सका। सुल्तान ने भोजन त्याग दिया। ___ आदम खाँ पिता की बीमारी सुनकर, राज्य प्राप्त करने की कामना से जैन नगर गया। उसने एक दिन राजधानी में व्यतीत किया । कोशेश हस्सन ने हाजी का पक्ष ग्रहण किया। मन्त्रियों द्वारा त्यक्त, हत भाग्य, आदम खां कुतुबुद्दीन पर जाकर, हतश्री हो गया। हाजी खाँ राजधानी प्रागण मे पहुँचा। घोड़ों पर अधिकार कर लिया। आदम खां के अधिकार की बात, सुनते ही, विषुलाटा मार्ग से आदम खाँ बाहर चला गया। हाजी खाँ का पुत्र हसन खाँ पर्णोत्स मार्ग से काश्मीर में प्रवेश किया। सुल्तान अपना अन्तिम समय निकट जानकर, जैसे निश्चिन्त हो गया था। सुल्तान ने ज्येष्ठ मास द्वादशी लौ० ४५४६ = सन् १४७० ई० को प्राण त्याग किया। राजकीय सम्मान के साथ, कीरथ पर आरूढ कर, छत्र चामर सहित, ६९ वर्षीय राजा, को जिसकी दाढी अभी भी काली थी, पैत्रिक शवाजिर (मजारये-सलातीन) ले गये। उसे एक वस्त्र में लपेटा गया। पिता सिकन्दर बुत शिकन के समीप दफन किया गया। कब्र पर एक दीर्घ स्फटिक शिला खड़ी कर दी गयी। मृत्यु पर दान पुण्य किया गया। उस दिन नगर में किसी के घर चूल्हा नहीं जला। समस्त काश्मीर मण्डल में किसी के घर से धूवा निकलते किसी ने नही देखा। सुल्तान के आँख मूंदते ही, भव्य सुल्तान की सभा स्वप्नवत् हो गयी। विद्या का पारखी, विद्वानों, कलाकारों का सम्मान, आदर, सत्कार तथा सहायक कश्मीर मण्डल मे नही रह गया। (द्रष्टव्य = परिशिष्ट 'ण' जोनराज तरंगिणी: लेखक) हैदरशाह : (सन् १४७०-१४७२ ई० द्वितीय तरंग): हाजी खाँ अभिषेक नाम 'हैदर शाह' नाम से काश्मीर का सुल्तान हुआ। उसने राज्य ज्येष्ठ प्रतिपद लौकिक ४२४३ = सन् १४७० ई० में प्राप्त किया। राजधानी के प्रांगण में स्वर्णसिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उस समय
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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