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________________ तरंग: जैनुल आबदीन (सन् १४१९-१४७० ई० एक तरंग) :. जैनुल आबदीन प्रथम बार सन् १४१९ ई० मे सुल्तान बना था। परन्तु मार्गशीर्ष लौकिक ४४९५ = सन् १४१९ ई० में अली शाह ने कनिष्ठ भ्राता जैनुल आबदीन से राज्य वापस ले लिया। ज्येष्ठ सप्तर्षि किंवा लौ० ४४९६ = १४२० ई० में पुन: जैनुल आबदीन ने राज्य प्राप्त किया। जोनराज ने जैनुल आबदीन के राज्यकाल का वर्णन सन् १४५९ ई. तक किया है। तत्पश्चात् १४५९ ई० से १४७० ई० का वर्णन श्रीवर ने लिखा है। ग्यारह वर्षों का इतिहास श्रीवर ने प्रथम तरंग के सात सर्गों में लिखा है। जोनराज ने ३९ वर्षों का इतिहास २२३ श्लोकों तथा श्रीवर ने ११ वर्षों का इतिहास ८०२ श्लोकों में लिखा है। श्रीवर का वर्णन सविस्तार है । श्रीवर प्रारम्भ में ही सुल्तान की तुलना रघुनन्दन एवं धर्मराज से कर, उसकी प्रशस्ति वर्णन करता है। सुल्तान ने अनुद्विग्न मन, काव्य, शास्त्र श्रवण, गीत, न्याय एवं वीरता के चमत्कार से, काल यापन किया था। सुल्तान शाहमीर वंश का अन्तिम सुल्तान था, जिसने काश्मीर के बाहर सेना सहित अभियान कर विजय प्राप्त की थी। गुप्तचरों द्वारा प्रजा के सुख-दुःख का ज्ञान रखता था। सुल्तान के आदमखाँ हाजी खाँ, बहराम खाँ, एवं जसरथ पुत्र थे। जसरथ का बाल्यावस्था मे देहान्त हो गया था। शेष तीनों पुत्र जीवनोपरान्त तक जीवित थे। आदम खाँ राज्य प्राप्त नहीं कर सका। जम्मू के राजपक्ष से यवनों द्वारा युद्ध में मारा गया। हाजी खाँ सुल्तान बना। बहराम खाँ को हाजी खाँ के पुत्र ने अन्धा बना दिया। कारागार में रख दिया। तीन वर्षों के पश्चात् उसकी मृत्यु हो गयी। आदम खाँ तथा हाजी खाँ मे जीवन पर्यन्त द्वेष एवं संघर्ष की स्थिति बनी रही। सुल्तान ने पुत्रों में संघर्ष बचाने के लिये, आदम खां को काश्मीर से बाहर जाने का आदेश दिया था। इसी सयय देश में बारूद का प्रयोग आरम्भ हुआ। तोप का काश्मीर में लौकिक ४५४१ वर्ष = सन् १४६५ ई० निर्माण किया गया। भुट्टों को आदम खां जीत कर आया। तुरन्त दूसरे भ्राता हाजी खां को सुल्तान ने लोहराद्रि जाने की आज्ञा दे दी। परन्तु लो० ४५२८ = सन् १४५२ ई० मे रावत्र, लवलादि द्वारा प्रेरित खान पुनः काश्मीर आने को प्रयास किया। हाजी खां शोपुर मार्ग से राजपुरी त्याग कर काश्मीर आया। हाजी खां के विद्रोह तथा ससैन्य काश्मीर में प्रवेश की बात सुनकर, सुल्तान सामना करने के लिए ससैन्य प्रस्थान किया। मल्लशिला समीप दोनों पक्ष की सेनायें युद्धार्थ सन्नद्ध हो गयी। युद्ध के पूर्व सुल्तान ने पुत्र हाजी खां के पास दूत भेजा। हाजी खा के सैनिकों ने दूत का नाक-कान काटकर, उसे विरूप कर दिया। इस अभद्र एवं क्रूर व्यवहार को देख कर, सुल्तान क्रुद्ध हो गया। युद्ध के लिए निकला। युद्ध में खान हतोत्साह हो गया। प्राण रक्षा हेतु आर्तनाद करने लगा। रण में बीर धात्री पुत्र ठक्कुर हसन, हुस्सन, सुवर्णमिह एवं
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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